नयी भोर
काव्य साहित्य | कविता अर्चना मिश्रा15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
नयी लालिमा फूटी है
सूरज ने बाँहें खोली हैं
कंचन सी है आभा इसकी,
रत्न जड़ित सिंहासन है,
इस ओज को ना भूलो तुम
उठो, बढ़ो, कुछ काम करो
यूँ ही ना तुम आराम करो
जग जल रहा एक आग में
शीतल फौहारें डाला करो
चारों तरफ़ मचा ये कैसा शोर
धधकती ज्वालाएँ चहुँ ओर
अर्ध सत्य को जान कर
डंका कब तक बजाओगे
जो पीड़ित है उसको
इंसाफ़ कब दिलाओगे
ग्लानि करने का वक़्त गया
जो मिला था सब संशय में गया
अब ना मिलेगी वो रात कहीं
अब ना मिलेगा वो चैन कहीं
हमको आगे बढ़ना होगा
कुछ नया इतिहास रचना होगा
दे-दे के दुहाई हम कायर हैं बने
अब हमको लड़ना होगा।
सत्य जो पूर्ण हो सके
ऐसा कुछ करना होगा।
मिथ्या, भ्रम की आग से हमको
अब निकलना होगा
झुलस रहे लोग सभी
मरहम अब लगाना होगा
भेदभाव को भूल के
सबको अब अपनाना होगा
सबको गले लगाना होगा।
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