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काश ये भी गुलाबी हो जाएँ 

 

सिर्फ़ मेरे जिस्म को रंगीन करना चाहते हो, 
होली जी भर मेरे संग खेलना चाहते हो, 
क्या कोई ऐसी भी क़वायद है भला 
जिसमें मेरी रूह भी रँग जाये। 
मेरी स्वाँसों में फिर से जान आ जाये, 
सिर्फ़ मिठास मुँह तक ही ना रहे
मेरी रूह में भी चासनी घुल जाये। 
मन के आँगन में वर्षों से 
ये जो काले साये घेरें हैं, 
काश ये भी गुलाबी हों जायें। 
मेरा रोम रोम भीग जाये, 
सभी राग द्वेष काश मिट जाये
तुम भी वैसे ही समर्पित हो पाओ
जैसा मैं चाहती हूँ, 
सिर्फ़ बदलने की चेष्टा लेके ना आना, 
कुछ तुम भी बदल कर आना, 
मेरे अन्तर्मन को झंकृत कर जाना, 
बड़ी सुनसान हैं ये गलियाँ मेरी 
कुछ मधुर तान सुना जाना, 
काश कि तुम ऐसा कर पाओ, 
जो कर पाना तभी आना, 
फिर जी भर खेलूँगी में भी होली, 
अपने सपनों की होली, 
मेरा रोम रोम पुलकित होगा 
श्री राधा जी जैसा रास अपना भी होगा। 

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