दरिंदगी उस रात की
काव्य साहित्य | कविता अर्चना मिश्रा1 Dec 2022 (अंक: 218, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
वो सुर्ख़ गहरी अमावस की रात
जाने क्या था उसके पास
आँखों में दरिंदगी तैर गई
उसको देख वो कैसे सहम गई
सिर्फ़ नफ़रत की आग थी
या वजह कुछ ख़ास थी
कैसे उसने मंसूबे को अंजाम दिया होगा
कैसे उसने गला रेत दिया होगा
सोच के ही दिल मेरा बैठ गया
इश्क़ का ये अंजाम हुआ
अब तो ये क़िस्सा आम हुआ
पूरी की पूरी स्त्री मेरे अंदर तक भयभीत हो गई
ये कैसे कृत्य को अंजाम दिया
यही अंत होना था प्रेम का
या प्रेम के नए आयाम लिखे जाने थे अभी
एक पूरा युग जैसे मर गया
ये कौन सा समाज हैं
जहाँ क़त्लेआम अब सरेआम हैं
एक जुर्म ऐसा जिसने मानवता को शर्मसार किया
लोगों की आँखोंं का पानी अब सूख गया
ये नहीं कोई रोज़ की वारदात
एक ऐसा कांड जिसने पूरे देश को किया शर्मसार
महसूस कर के देखिए
ये कितना बड़ा था जघन्य अपराध
किसी के अंतर्मन में क्या पल के बैठा है
इतनी बड़ी वारदात क्या ये थी बस एक दिन की बात
या था कोई चक्रव्यूह रचा
जिसमें जाने कितनी ही श्रद्धा को देनी हैं क़ुर्बानी अभी बाक़ी॥
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