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आर्त्तनाद

ना छेड़ो ज़ख़्म को मेरे 
पीर को पीर रहने दो 
तुम्हारे जो ये तीर हैं
मेरी राहों को रोके हैं
तुम्हारे नयन जो समझे हैं
उनसे अविरल नीर बहते हैं
मेरे मौन को समझो 
मौन को मौन रहने दो 
जो मैं जाग जाऊँगा 
तुम्हारे हाथ ना आऊँगा 
क्या समझोगी प्रेम को मेरे 
उसे एक तरफ़ा ही रहने दो। 
मैं जो भी बना आज 
सब तेरी ही देन है, 
कहीं घनघोर रात है, 
तो कहीं खिलता सा सूरज है
हवाएँ भी हैं मनचली 
फ़िज़ाएँ भी कुछ बहकी हैं
तेरे मेरे प्रेम की गवाही ये भी देती हैं
तू भूल चुकी जो सब कुछ 
तो उसे भूला ही रहने दो 
जो मैं कुछ याद दिलाऊँगा 
तो सब कुछ लौट आयेगा
जो ग़र मंज़ूर हो तुमको 
तो मेरे साथ चलना है, 
वफ़ा की आँच में जाकर 
तुमको भी थोड़ा सा तपना है, 
तभी जाकर प्रेम अपना कुंदन बनेगा, 
तेरे भीतर मेरे भीतर तभी जाके ये पैठेगा, 
ये कहता मैं नहीं ज़माना भी कहता है
सदा से कृष्ण के संग राधा का नाम रहता है
जो तू समझ जाये तो तेरे साए में रहना है
जो ना समझे कुछ भी 
तो मुझको ख़ून के आँसू ही पीना है . . .
ना छेड़ो ज़ख़्म को मेरे पीर को पीर रहने दो। 

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