बंद कमरे में (क़फ़स)
शायरी | नज़्म अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’15 May 2020 (अंक: 156, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
ता-उम्र ढूँढ़ता रहा
मौत मैं बंद कमरे में
आज मेरे नज़दीक थी
वो बंद कमरे में
नादान हैं लोग जो
मुझको तन्हा कहते हैं
शायद देखा नहीं है
मुझको बंद कमरे में
सुकूने-दिल के लिए
जब भी बाहर निकला
चीख़ पड़ा, पीछे से
कोई बंद कमरे में
होशो-हवास सब
छोड़कर आना यारोड
वर्ना कुछ भी न
दिखेगा बंद कमरे में
मुद्दाते हुई मगर ये
कभी खुल न सका
था मैं क्यूँ बंद ‘क़फ़स’
इस बंद कमरे में
जब भी बदलता है
गरदिशे-दौरां का रंग
गर्द उड़ता हूँ आईने की
मैं बंद कमरे में
मेरी मय्यत देखकर,
यक़ीन हुआ गली को
रहता था कोई बशर
इस बंद कमरे में
दिनभर यहाँ वहाँ रहता है
चिड़िया का जोड़ा
हाँ मगर रात को सोता है
मेरे बंद कमरे में
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