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भाषा में व्याकरण और शब्द ज्ञान सीखना बहुत ज़रूरी

बच्चो! हमारे देश में अनेक धर्मों के मानने वाले रहते हैं; जिनके अलग रीति-रिवाज़ होते हैं। यहाँ तक कि हमारी भाषाएँ भी अनेक हैं। इसके वावजूद  हम सभी प्रेम और सौहार्द के साथ मिल-जुलकर रहते हैं।  इसी "अनेकता में एकता" से विश्व में हमारे देश को एक विशेष पहचान और सम्मान मिला है।

भाषाओं को हमारी आवश्यकता के अनुसार देखा जाए तो हमारी प्रमुख भाषा हिन्दी है, जो राजभाषा है। दूसरे नंबर पर अँग्रेज़ी भाषा, जो सामान्य भाषा है, इसे विश्वस्तरीय भी कह सकते हैं। और फिर तीसरी प्रांतीय भाषा है। यह वह भाषा है जो प्रांतों में हिन्दी एवं अँग्रेज़ी को छोड़कर प्रमुखता से बोली जाती है। यानी ऐसे भारतीय जो अहिन्दी भाषी हैं और उनकी वह भाषा जो उनके लिये विशिष्ट है ... मातृभाषा है। जैसे मराठी, गुजराती, राजस्थानी, तमिल, तेलगू, आसामी, बंगाली कन्नड़ आदि।

इस भाषा को इस क्रम में तीसरे से पहले भी समझ सकते हैं।

बच्चो! भाषा कोई भी हो, उसे सीखने के लिये सबसे पहले उस भाषा की व्याकरण का समुचित ज्ञान बहुत ही आवश्यक है। आप इसमें जितने परिपक्व होंगे, उतने  सही तरीक़े से उसमें निपुण होंगे और फिर उतने ही समृद्ध और सफल भी रहेंगे।

अतः संबंधित भाषा का व्याकरण सीखने और समझने में ज़रा भी क़ोताही नहीं बरतनी चाहिए और न संकोच करना चाहिए। 

कक्षा में अध्यापक जी द्वारा जो भी पढ़ाया, बताया और सिखाया जाता है, उसे ध्यान से, मन लगाकर सुनना, समझना और सीखना चाहिए। जो बताया जाता है, घर में उसका मनन करके अवलोकन कर लेना चाहिए ताकि वह विषय या पाठ भली-भाँति मन में बैठ जाए। मेरा अनुभव है कि यदि वह विषय समय रहते समझ में नहीं आया तो फिर हमेशा कमज़ोर ही रहता है।

अतः झिझक, संकोच, भय, लापरवाही आदि ऐसा कुछ भी ख़याल मन में न लाते हुए, अमूल्य अवसर को हरगिज़ न छोड़ें बल्कि ऐसे अवसर की हमेशा तलाश में रहें। 

संबंधित भाषा की व्याकरण की पुस्तक ख़रीद कर, समय निकाल कर उसका अध्ययन करें। कक्षा में जब भी व्याकरण पढ़ायी जा रही हो, एकाग्र होकर सुने, समझें और गुनें। कोई संदेह, कोई जिज्ञासा हो या कोई  बात समझ में न आ रही हो तो तत्काल पूछकर समाधान कर लें। सुविधा और सामर्थ्य से यदि इस विषय के लिये कोई अपना या व्यवसायिक पढ़ाने वाला भी मिले तो उनसे सीखने में कोई हर्ज़ नहीं। हाँ, वह नेक और निष्ठावान हो। किसी लालच, दबाव या शर्त रखे तो उससे बचें।

आप चाहें तो, जो भाषा आप सीख रहे हैं, उसे आपस में सीधे वार्तालाप एवं व्हाट्सएप (पत्राचार) करके भी अभ्यास कर सकते हैं। परंतु ऐसी स्थिति में सजग भी रहना है। कई बार देखा गया है, कुछ लोग मज़ाक या ईर्ष्या  में ग़लत सिखा देते हैं और फिर आप कहीं बात करने पर उपहास का पात्र बन जाते हैं। अतः सिखाने वाला विश्वसनीय होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए भी कि यदि बोलने और लिखने में कोई त्रुटि हो रही हो तो वह उसे बतलाकर सुधार कराये।

इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है, शब्द ज्ञान। आप संबंधित भाषा के शब्द, उनके अर्थ के साथ जितने अधिक से अधिक याद कर लेंगे आपको उस भाषा में उतनी ही दक्षता हासिल होती जायेगी। बोलने, लिखने और  समझने में आपको उतनी ही आसानी होगी और आप उतनी ही शीघ्रता से क़ामयाबी हासिल करने में सफल होंगे। भाषा से संबंधित शब्दकोश अवश्य ख़रीदने की कोशिश करें। आपके पास यह उपलब्ध रहेगी तो आपको यह ज़रूरत पर बहुत काम आएगी। पाँच-पाँच, दस-दस शब्द रोज़ सीखने और याद रखने का प्रयास करें। शाम को पुस्तकालय में जाकर भी अध्ययन कर सकते हैं। अख़बार, कोई पत्र-पत्रिका, पुस्तक आदि जब भी समय मिले, पढ़ना चाहिए और उसमें जिन शब्दों के अर्थ न मालूम हों, माता-पिता, भाई-बहन, गुरु या मित्र , परिजनों में से किसी से भी पूछ लेना चाहिए। जैसा कि पहले बतलाया है, यदि शब्दकोश हो तो उससे भी सहारा लिया जा सकता है।

अपने मन में किसी विषय को लेकर कोई बात कहने का मन हो रहा हो तो उसे अपनी भाषा में लिख लेना चाहिए। इससे आपकी लेखन कला बनेगी, विकसित होगी और सँवरेगी। नये-नये शब्दों का उपयोग करने से शब्द ज्ञान बढ़ेगा। लिखने की शैली बढ़िया होगी और फिर उसे अँग्रेज़ी और अन्य जो भाषा सीख रहे हों, उसमें लिखकर किसी जानकार से जाँच करा लेनी चाहिये।

एक बात और यहाँ सुविधा के लिये बताना ज़रूरी है, वह यह कि आप पहले अपनी मूल भाषा, फिर अँग्रेज़ी भाषा सीखें। तत्पश्चात तीसरी भाषा सीखने में रुचि लें।
क्योंकि भाषा सीखने में समय लगता है और लगातार अभ्यास करते रहना होता है।

एक वस्तु के कुछ और नाम भी होते हैं,जिन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। हिन्दी भाषा में जैसे आकाश को गगन,आसमान, नभ आदि भी कहा जाता है। धरती को पृथ्वी, भू, भूमि आदि; पेड़ों को वृक्ष, तरु, पेड़ आदि नामों से भी जाना जाता है।
   
बच्चो! ये ही उस नाम के पर्यायवाची शब्द हैं। धीरे-धीरे इन्हें भी सीखने और याद रखने का प्रयास करो। इससे आपकी शब्द चयन की कला समृद्ध होगी। कहाँ, कौन सा शब्द उचित रहेगा, इसका सही और सार्थक चयन आप आसानी से कर सकेंगे।

ऐसे ही मुहावरे और कहावतें भी होती हैं। घर में बड़े-बुज़ुर्गों से कई बार बातों-बातों में आपने इन्हें अवश्य सुना होगा। इन्हें सीखने और समझने की कोशिश करो। किसी बात को समझाने और रुचिकर बनाने में इनका सही उपयोग करके आप अपने कथन को मज़बूती प्रदान कर सकते हैं।

अभी आपकी उम्र ऐसी है कि जल्दी याद भी हो जाता है और भूलते भी नहीं हो। कहते हैं, बचपन में याद किया हमेशा याद रहता है।

यह बात भी याद रखो कि ये सब आज ही करने के लिये नहीं बतलाया जा रहा है, बल्कि आज से शुरुआत करने के लिये बतलाया जा रहा है।
सुविधा और आसानी से जितना जब सरलता से, सहज में हो सके समझते और याद करते रहना। ये जीवन के लिये बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी होती हैं और बहुत काम आती हैं।

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