चूहा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता नरेंद्र श्रीवास्तव15 Nov 2019
चूहा फुदकता इधर-उधर।
झट भागे जब पड़े नज़र॥
दुबका बैठा रहता बिल में।
बने शेर, देर रात पहर॥
चीज क़ीमती या काम की।
काटे-कुतरे नहीं फ़िकर॥
भीगी-बिल्ली सा बन जाये।
जब कोई ले उसे पकड़॥
छोटा पेट भले ही उसका।
खाने में नहीं करे कसर॥
गणेशजी का वाहन बना।
जाए से ना जाए अकड़॥
बिल्ली से डरता है बहुत।
ख़तरा लगता डगर-डगर॥
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