अपनापन
कथा साहित्य | लघुकथा नरेंद्र श्रीवास्तव15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
उस दिन शर्माजी की ओर से अस्पताल में मरीज़ों और मरीज़ों के परिजनों के लिए खिचड़ी बाँटने का कार्यक्रम था। कार्यक्रम के समापन होने के बाद शर्मा जी अपने साथ आए घरेलू नौकर छोटू से बोले, “अब तुम भी खिचड़ी ले लो।”
“जी,” कहकर छोटू ने खिचड़ी के बरतन में से बची-खुची खिचड़ी दोने में ले ली। अब खिचड़ी ख़त्म हो गई थी। छोटू दोना लेकर दूर रखी एक बैंच की ओर जाने ही वाला था कि एक अनजान व्यक्ति खिचड़ी लेने के लिए आते देखकर वह ठिठक गया। शर्मा जी भी असमंजस में पड़ गए। तभी छोटू तुरंत बहाना बनाते हुए बोला, “अरे . . . अरे . . . याद आया . . . आज तो मेरा उपवास है,” और यह कहते हुए उसने अपने हाथ का वह दोना, उस अनजान व्यक्ति को थमा दिया।
शर्मा जी, छोटू की समझदारी और अपनापन पाकर भाव विभोर हो गए।
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