शिकवा-ए-उल्फ़त
शायरी | सजल नरेंद्र श्रीवास्तव1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ये कि मैं तो सदा ही तेरे साथ रहा
तू ही मगर ना कभी मेरे साथ रहा
सोचे बग़ैर तू सुन रहा है या नहीं
एक तरफ़ा मैं करता तुझसे बात रहा
तू कब हँसा, कब रोया, कब उदास हुआ
भूला हो तू भले ही, मुझे याद रहा
जाने किस बात पर गले लगाया मुझे
वो मेरा ख़्वाब था और जज़्बात रहा
यूँ रहे अब तक तेरे शहर में ‘नरेन्द्र’
जुदाई तक भी बेबसी का हाथ रहा
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