देश हमारा . . .
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता नरेंद्र श्रीवास्तव15 Jan 2022 (अंक: 197, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
देश हमारा, हमको प्यारा,
हम भी सबको प्यारे।
जाने कितने रूप सजाये,
अनुपम लिए नज़ारे॥
धर्म विविध हैं, जातियाँ अगणित,
भिन्न बोली, भाषाएँ।
रूप, रंग, पहनावे सुंदर,
अद्भुत परम्पराएँ॥
पर्वत, नदियाँ, जंगल, झरने,
बगिये, क़िले अजूबे।
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे,
पूरे हों मंसूबे॥
ऋषि, मुनियों का देश हमारा,
वैज्ञानिक, कवि, चिंतक।
सीमा पर सेना-प्रहरी हैं,
खेत जोत रहे कृषक॥
बड़ी-बड़ी इमारतें ऊँची,
खड़ीं भव्य मीनारें।
सड़कें चौड़ी-चौड़ी फैलीं,
दौड़ें बाइक, कारें॥
दूर-दूर तक पटरी फैलीं,
रेल हज़ारों चलतीं।
बड़े-बड़े, लंबे-लंबे पुल,
नीचे नदियाँ बहतीं॥
वायुयान उड़ आसमां में,
गद्गद् मन को करते।
लहरों बीच मचलतीं नावें,
जहाज़ मन को हरते॥
रहते हैं सब मिलजुलकर के,
अपनापन जतलाते।
सभी धर्मों के त्योहारों पर,
मिलके जश्न मनाते॥
वीरों की पावन धरती ये,
महक रही ज्यूँ चंदन।
भारत माँ के चरणों में नत,
वंदन है, अभिनंदन॥
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