हल निकलेगा कैसे
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता नरेंद्र श्रीवास्तव1 Mar 2019
अंकल जी बैठे सीट पर
मज़े से पाँव पसारे।
पास ही यात्री खड़े थे
थके, हारे बेचारे॥
सब ने चाहा अंकल जी
गर बैठ जायें सिमटकर।
अंकल जी तो अड़ियल थै
और बैठ गये तनकर॥
स्टेशन जब उनका आया
भूले बैग ले जाना।
खिड़की में से झाँकते बोले
भाई! मेरा बैग उठाना॥
भीतर से आवाज़ें आयीं
आकर ख़ुद बैग ले जायें।
तरस न किया जब आपने
हम क्यों तरस दिखायें॥
बाजू से एक बुज़ुर्ग बोले
बदला न लो ऐसे।
सभी एक से हो जायें तो
हल निकलेगा कैसे?
इसीलिये कहता हूँ उनका
दे दो बैग उठाकर।
समझदार होंगे तो यात्रा
करेंगे सामंजस्य बनाकर॥
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