अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

राजनीति के प्रपंच

 

अंतरिक्ष में पत्नी के साथ विचरण करते हुए प्रभो बोले, “प्रिये, आओ तुम्हें भू लोक में भारतवर्ष के उस राज्य में ले चलते हैं जहाँ चुनावी माहौल है।”

“मैं भी आपसे यही कहने वाली थी, अंतर्यामी।”

कहने की देर थी, भगवन गंतव्य पर पहुँच गये। 

“ये क्या प्रभो, अभी तो आपका कोई त्योहार नहीं है। फिर ये जुलूस?”

“प्रिये, ये मेरा नहीं। चुनावी जुलूस है। ये जो खुली कार में माला से लदे हैं। ये नेताजी हैं। अभी प्रत्याशी हैं और इनके आगे-आगे जो नाच-कूद रहा है और नेताजी का ख़ासमख़ास बन रहा है। यही इन नेताजी को पटखनी देने वाला है। 

“और प्रिये, वो पार्क के उस तरफ़ भीड़ देख रही हो, वह दूसरे दल का जुलूस निकल रहा है। वहाँ भी ऐसा ही नाच हो रहा है। 

“दोनों जुलूस में नाच कूद मचाने वाले कार रूपी रथ में बैठे नेताजी के ख़ासमख़ास होने का स्वाँग कर रहे हैं।”

“यह क्या स्वामी, वह नाचने वाला तो मोबाइल से बात करते हुए कहाँ चला गया?”

“प्रिये, उसे कोई बड़ा ऑफ़र मिला है, इसीलिए वह दूसरे दल में चला गया है। पर, देखती चलो। अभी पिक्चर बाक़ी है।”

“अरे, एक नाचने वाला गया तो यहाँ तो दो नाचने वाले आ गये और पहले वाले से ज़्यादा ज़ोर-शोर से नाच रहे हैं।”

“ये दोनों नाचने वाले उस दल के हैं, जहाँ वह पहले वाला नाचनेवाला गया है।”

“प्रिये, ये दोनों नाचने वाले बार-बार अपना मोबाइल क्यों देख रहे हैं?”

“कहीं से फोन आ रहा है, जिनसे ये बात नहीं करना चाहते।”

“अरे, ये दो पुलिसवाले आकर अपने मोबाइल से दोनों की बात कराने लगे।”

“ऐसा तो होना ही था। फोन लगाने वाले नेता का कोई फोन न उठाये तो दमदार सहारा लेना ही पड़ता है।”

“अब क्या होगा? मेरा रोमांच बढ़ता ही जा रहा है।”

“देखो, ये नाचने वालों की संख्या तो बढ़ती जा रही है।”

“अब वे दोनों नाचने वाले इन सभी नाचने वालों को लेकर उस कार रूपी रथ पर सवार नेताजी के कान में जाकर कुछ कहेंगे। नेताजी यह सुनकर अपने कुरते की जेब से एक काग़ज़ निकालकर उसे सौपेंगे और रथ से उतर जायेंगे। वह काग़ज़ असल में नेताजी का त्याग पत्र होगा। यानी कि अब उन्होंने त्याग पत्र दे दिया है और अब जिसने वह त्याग पत्र नेताजी से लिया था, वह रथ पर सवार हो जायेगा और वो नेताजी वहाँ से कहीं अज्ञात स्थल की ओर निकल जायेंगे।”

. . . ठीक ऐसा ही हुआ। 

अरे एक और चमत्कार। 

वो दूसरा जुलूस भी इसी जुलूस में आकर मिल गया। वाह! 

“बस प्रभो! अब मुझे यहाँ रोमांच नहीं, घुटन हो रही है। शीघ्र यहाँ से ले चलो। ऐसे तो सूखे पत्ते भी नहीं गिरते। जितना ये . . .”

और प्रभुजी वहाँ से वापस हो गये। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

सजल

लघुकथा

कविता

गीत-नवगीत

बाल साहित्य कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता - हाइकु

किशोर साहित्य आलेख

बाल साहित्य आलेख

काम की बात

किशोर साहित्य लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं