शिकवा है जग वालों से
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत नरेंद्र श्रीवास्तव15 Jun 2019
जन-जन पल-पल जूझ रहा है
इस जग में जंजालों से।
जीवन का मतलब यह है तो
शिकवा है जग वालों से॥
कदम-कदम पर लूटामारी
छल, द्वेष,पाखंड है पसरा।
बाहर या घर में रहकर भी
सहमे रहते लगता खतरा॥
रक्त और रचना इक़ जैसी
लुटते हमतन वालों से।
मिलजुल करके रहें सभी खुश
इक़-दूजे का साथ निभायें।
सारे गिले-शिकवे भूल के
इक़ दूजे को गले लगायें॥
आधी मुश्किल कम हो जाये
प्रेम लुटाने वालों से।
छल,कपट की राह को तज के
नेकी,निःश्छल दिल से जोड़ें।
नेक नियत की रक्खें भावना
स्वार्थ,अहं से नाता तोड़ें॥
भयमुक्त,सौहार्द जगेगा
आस लगाने वालों से।
प्रेम,त्याग जब तक न होगा
आपस में नफरत फैलेगी।
तकरारें इस तरह बढ़ेंगी
क्रोध जगे,हिंसा फैलेगी॥
नैतिकता का पालन होवे
विनय यही जग वालों से।
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