खेल पुराने
काव्य साहित्य | कविता नरेंद्र श्रीवास्तव15 Jul 2019
दादाजी , पिंकू से बोले
बीतीं यादें ताजा करके।
खेल पुराने कोई ना खेले
अब लड़की हो या लड़के॥
मन में जितना आए खेलो
कम्प्यूटर में गेम।
चाहे पुराने गेम ना खेलो
पर जानो उनके नेम॥
छुप्पा-छुप्पी,छिया-छलाई
छर्रा, लंगड़ी, नदी-पहाड़।
गिल्ली-डंडा, अंडा-गिपड़ी
बाहर खेलें मिलके यार॥
नो - गोटी, सोलह - गोटी
अट्टी, चौपड़ खेलें भीतर।
कोना-कोना खेलें कभी
कभी खेलें दस्तर-पिंजर॥
अगर खेलना चाहो इनको
अपने मित्रों को ले आना।
खेल, खेलने से ही सीखोगे
ऐसे मुश्किल है समझाना॥
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