ऐसा ही . . .
कथा साहित्य | लघुकथा नरेंद्र श्रीवास्तव1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
गोलू ने सिर झुकाये-झुकाये दुकान में प्रवेश किया तो सेठ ने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाते हुए कहा, “क्यों गोलू, बिटिया साथ चलने मचल रही होगी और फिर उसे मनाने में समय लग जाने की वजह से देर हो गई, ऐसा ही हुआ है न?”
“माफ़ करना, सेठ जी,” गोलू झेंपते हुए बोला।
“कोई बात नहीं बेटा। मैं समझता हूँ। मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा है। मैं दुकान आने लगता हूँ तो मेरी नातिन भी मेरे साथ चलने की ज़िद करती है। बड़ी मुश्किल से उसे मना-थपा कर यहाँ आ पाता हूँ,” सेठ जी बोले।
गोलू चुपचाप सिर झुकाये झाड़ू लगाने लगता है और सेठ जी अपने काम में लग जाते हैं।
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