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है तो गर्व की बात

 

घर में 
सबसे बड़ा 
यानी 
मुखिया होना
आसान नहीं होता
 
पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी
बख़ूबी निभानी होती है 
ज़रूरतें और समस्याओं का
निदान करने की 
जवाबदेही भी होती है 
मुखिया की
 
और
सभी के शौक़ को 
पूरा करने की भी 
विशेष 
 
सभी सदस्य 
निश्चिंत रहते हैं
 
चिंतित रहता है, तो
बस, मुखिया
 
एक ज़रूरत पूरी हुई 
दूसरी आ गई 
एक का शौक़ पूरा हुआ 
दूसरे की फ़र्माइश आ गई 
 
एक समस्या हल हुई 
दूसरी आ गई 
 
इन्हीं सब झंझटों के बीच
ख़ुद की ज़रूरतें
और शौक़ को छिपाए
 
दिन और रात से 
थरथराती, डगमगाती
अधूरी-सी ज़िन्दगी 
कब बीतकर 
फोटो फ़्रेम में लगकर
बैठक वाले कमरे की दीवार पर 
टँग गई 
पता ही नहीं चलता
 
पर, कोई बात नहीं
मुखिया बनना . . . बने रहना
है तो गर्व की बात। 

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