नरेन्द्र श्रीवास्तव - 2
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु नरेंद्र श्रीवास्तव20 Feb 2019
हाइकु - 2
स्वप्न टूटे तो
काँटे चुभने लगे
झरी पाँखुरी।
*
तेरे बग़ैर
लम्हा पिन चुभाये
चाँद हंसिया।
*
कागा बोला तो
तन्हाई फड़कती
शगुन शुभ।
*
तेरे आने से
महक उठा दिल
मधुबन-सा।
*
ग्रीष्म मौसम
शापित पतझड़
दुःखी पवन।
*
सूरज करे
धरा अभिनंदन
प्रकाश पुष्प।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
बाल साहित्य कविता
- एक का पहाड़ा
 - घोंसला प्रतियोगिता
 - चंदा तुम प्यारे लगते
 - चिड़िया और गिलहरी
 - चूहा
 - जग में नाम कमाओ
 - टीचर जी
 - डिब्बे-डिब्बे जुड़ी है रेल
 - देश हमारा . . .
 - परीक्षा कोई भूत नहीं है
 - पुत्र की जिज्ञासा
 - पौधा ज़रूर लगाना
 - फूल और तोता
 - बजा-बजाकर ताली
 - बारहामासी
 - भालू जी की शाला
 - मच्छर
 - मुझ पर आई आफ़त
 - ये मैंने रुपये जोड़े
 - वंदना
 - संकल्प
 - स्वर की महिमा
 - हरे-पीले पपीते
 - हल निकलेगा कैसे
 - ज़िद्दी बबलू
 
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सजल
लघुकथा
गीत-नवगीत
- अपने वो पास नहीं हैं
 - एहसास नहीं . . .
 - कोरोना का दंश
 - चहुँ ओर . . .
 - चाहत की तक़दीर निराली
 - तुझ बिन . . .
 - तेरे अपनेपन ने
 - धूल-धूसरित दुर्गम पथ ये . . .
 - प्यार हुआ है
 - प्रीत कहे ये . . .
 - फागुन की अगवानी में
 - फिज़ा प्यार की
 - शिकवा है जग वालों से
 - सच पूछो तनहाई है
 - साथ तुम्हारा . . .
 - साथ निभाकर . . .
 - सावन का आया मौसम . . .
 - सोलह शृंगार
 
किशोर साहित्य कविता
कविता - हाइकु
किशोर साहित्य आलेख
बाल साहित्य आलेख
काम की बात
किशोर साहित्य लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं