सच पूछो तनहाई है
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत नरेंद्र श्रीवास्तव1 Dec 2021 (अंक: 194, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
दिल-दिमाग़ में जबसे दौलत, कूट-कूट कर छायी है।
भीड़ भले ही आसपास है, सच पूछो तनहाई है॥
प्रतिस्पर्धा ये रेगिस्तानी,
दौलत की मृगमरीचिका।
तपते रिश्ते सूख रहे हैं,
पता नहीं है पानी का॥
प्रतिस्पर्धा को छोड़ें, बदलें, पर करे कौन अगुवाई है।
ठाठबाट के साधन इतने,
आकर्षित बाज़ार किये।
'सबकुछ' से झट घर भर लेवें,
जगती आँखें स्वप्न लिये॥
अहं भरा दीवानापन ये, इसकी ना भरपायी है।
दूर हुईं हैं जबसे पुस्तक
दूर हुए हैं सयाने भी।
जीवन के पैमाने बदले,
अपने औ' बेगाने भी॥
प्रेम पहुँच से दूर हुए पल, कटुता ने हथियायी है।
हमें बदलना होगा निज को,
नेह, नेक भरना होगा।
घृणा, द्वेष, पाखंड, अहं को,
दृढ़ता से तजना होगा॥
जब होगा संतोष हृदय में, तभी सुख, शांति, शहनाई है।
भीड़ भले ही आसपास है, सच पूछो तनहाई है॥
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