कविता मेरी नज़र में
काव्य साहित्य | कविता अनीता श्रीवास्तव1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
झंझावात हुए जब अंतर्जगत में
सूखे पत्ते सी झर गई
प्यास को पी कर मर्यादा को
अमर कर गई
तोड़ कर मौन वाणी में
आहिस्ता उतर गई
बेनाम संबंध के सम्बोधनों में
देख दर्पण सा सँवर गई
दुनियादारी के बोझ तले
दबी . . . शायद मर गई
जी उठी और का दुःख देख कर
हद है मौत से मुकर गई
जो कर न सका आदमी दो हाथों से
कविता जज़्बातों से कर गई।
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