के बाक़ी नहीं है अब
शायरी | नज़्म अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’1 Mar 2020 (अंक: 151, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
तुम रोओगे चिल्लाओगे बिखर जाओगे
बस एक दूसरे से लड़ते-लड़ते मिट जाओगे
मज़हबी अलगाव और सियासी चालों के दौर में
ख़ुद नहीं समझोगे तो न होगा कोई समझने वाला
के बाक़ी नहीं है अब कोई मसीहा आने वाला
तेरे मेरे के फ़लसफ़े को अब छोड़ना होगा
हरेक को अपने हिस्से का वज़न उठाना होगा
आज मैं जाग रहा हूँ, तुम सो जाओ यारो
गर हुई सहर तो होगा कोई उठाने वाला
के बाक़ी नहीं है अब कोई मसीहा आने वाला
कुछ ऐसी आदत हो गई है सोने की लोगों को
अब और न पिला साक़ी शराब लोगों को
जो मैं पी रहा हूँ वही पिला उनको साक़ी
अब न होगा शिव, न कोई ज़हर पीने वाला
के बाक़ी नहीं है अब कोई मसीहा आने वाला
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