तू बिखर गयी जीवनधारा
काव्य साहित्य | कविता सुषमा दीक्षित शुक्ला1 Jan 2020
तू बिखर गयी जीवनधारा
हम फिर से तुझे समेट चले
तू रोयी थी, घबराई थी
उठ-उठ कर फिर गिर जाती थी
तू डाल-डाल हम पात चले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
विपरीत दिशा का भँवरजाल
नयनों से अविरल अश्रुमाल
प्रतिक्षण तड़पे दिनरात जले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
प्रियतम का उर में मधुर वास
महसूस किया हर श्वास-श्वास
फिर वीर पिता से प्रेरित हो
तब वीर सुता बनकर निकले।
हम फिर से तुझे समेट चले।
तू बिखर गयी जीवनधारा
हम फिर से तुझे समेट चले. . .।
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