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ऊँचाई और गहराई

काईयुक्त चट्टानों से घिरी घाटी में दो मित्र फँसे हुए थे। दोनों मित्र ऊपर जाने  की कोशिश करते और फिसल जाते; दोनों को चोट भी लगती। एक प्रयास करता रहा और दूसने शारीरिक तो क्या मानसिक प्रयास भी नहीं किया। आख़िर में प्रयासरत व्यक्ति बाहर निकल गया। ऊपर आया व्यक्ति गहराई की ओर देख रहा था और गहराई में फँसा व्यक्ति ऊँचाई की ओर।

दोनों की नज़रें एक दूसरे से मौन वार्तालाप कर रहीं थीं, पहले की नज़र कह रही थी, "ज़रा ठहरो, मैं भी प्रयास करता हूँ।" और दूसरे की नज़र कह रही थी, "अगर तुमने मेरी सहायता की होती तो दोनों बहुत पहले ही बाहर आ जाते।"

एक व्यक्ति के मन में पश्चाताप की भावना उत्पन्न हुई और दूसरे में आत्मविश्वास की। आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने मंज़िल की ओर चल पड़ा और पश्चाताप करने वाला व्यक्ति, बड़ी मशक़्क़त के बाद बाहर आ पाया और वहीं जीवनयापन करने लगा।

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