बसंत की बहार में
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
हवा चली
पत्तियाँ चलीं
पेड़ भी थिरकने लगे
प्रकृति मदहोश थी
बसंत की बहार में
प्यार का प्रथम बार
अंकुरण जब हो रहा था
कण-कण धड़क रहे थे
प्यार के इज़हार में
हर्ष था उल्लास था
प्रेम और विश्वास था
धड़कनों में चाह थी
प्रस्ताव था व्यवहार में
उमंग थी रंग था
मिज़ाज बड़ा चंग था
दोस्ती की आड़ थी
प्यार की दरकार में
ईर्ष्या न द्वेष था
छल न फ़रेब था
हर प्राणी मस्त था
जीत और हार में
प्यार का प्रथम बार
अंकुरण जब हो रहा था
प्रकृति मदहोश थी
बसंत की बहार में।
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