लड़की हूँ लड़ सकती हूँ
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
आमतौर पर
बहुत कम देखने को मिलता है
कि दे दिया जाय अवसर
बेटियों को
स्वेच्छा से
घर, वर और कैरियर
वरण करने का
और दे दिया जाए अवसर
जब तक वे पढ़ना चाहती हैं
पढ़ाई का
ख़ैर
डिजिटल युग की लड़कियाँ
मज़बूत और होशियार हुई हैं
अपेक्षाकृत पहले से
अब वें जागरूक हैं
अपने भविष्य के प्रति
लड़कों से कहीं अधिक सजग और वफ़ादार हैं
और सफल
अब वे
समाज और राष्ट्र के सेवार्थ
डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील
मास्टर और अफ़सर बन
पेश करना चाहती हैं
एक मिसाल
कि लड़की हूँ लड़ सकती हूँ
अब हमें
चूल्हा-चौका
गोबर-कंडी तक ही सीमित ना रखा जाए
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अटल इरादों वाले अटल
- अहम् ब्रह्मास्मि और ग़ुस्सा
- आओ हम आवाज़ दें
- आओ ख़ून करें
- आने दो माघ
- ईश्वर ओम हो जाएगा
- ऐसा क्या है?
- कविता
- जन-नायक
- जय भीम
- जिसे तुम कविता कहते हो
- तुम्हें जब भी देखा
- दाल नहीं गलने दूँगा
- दिल की अभिलाषा
- दिल जमा रहे; महफ़िल जमी रहे
- न जाने क्यूँ?
- पागल, प्रेमी और कवि
- प्रकाश का समुद्र
- प्रेम की पराकाष्ठा
- बड़ी बात है आदमी होना
- बताओ क्या है कविता? . . .
- बसंत की बहार में
- भूख
- माँ
- मानव नहीं दरिंदे हैं हम
- मिलन
- मृत्यु और मोक्ष
- मेरे पाठको मुझे माफ़ करना
- मैं बड़ा मनहूस निकला
- मैं ब्रह्मा के पाँव से जन्मा शूद्र नहीं हूँ
- मैं हूँ मज़दूर
- लड़की हूँ लड़ सकती हूँ
- वह नहीं जानती थी कि वह कौन है?
- सच्चाई का सार देखिए
- सुन शिकारी
- सुनो स्त्रियो
- हिन्दी मैं आभारी हूँ
- क़लम का मतलब
पुस्तक समीक्षा
नज़्म
दोहे
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं