प्रकाश का समुद्र
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सूर्य को निगल गया हो ग्रहण
चंद्रमा भी अँधेरों की भेंट चढ़ गया हो जब
काली घोर घटाएँ छाई हो आसमान में
कहीं कोई सूराख़ ना हो रौशनी का
दूर दूर तलक नज़र न आये कहीं कोई नक्षत्र-तारा
समूचा संसार कोप भवन का पर्याय लग रहा हो जब
अँधेरा ही प्रकाश का समानार्थी समझा जा रहा हो तब
भ्रमवश नहीं पूरे विश्वास के साथ
यदि मान बैठे जुगनू
स्वयं को
प्रकाश का समुद्र
तो ग़लत नहीं है
ग़लत इसलिए नहीं है
क्योंकि उसने ऐसे वक़्त में स्वयं को
अजेय और परवरदिगार साबित किया है
जब बड़े-बड़े सिकंदर व धुरंधर
जकड़े हुए थे काल के शिकंजे में।
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