वह नहीं जानती थी कि वह कौन है?
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
दोस्तों के साथ खेलते हुए
पसीने से तरबतर
प्यास से व्याकुल
एक बच्ची
पहुँच जाती है नलकूप पर
पीने लगती है पानी
बुझाने लगती है प्यास
तभी होता है एक सज्जन को
उसके दलित होने का आभास
आख़िरकार उसने पूछ लिया
तुम कौन हो?
वह बच्ची
डरी सहमी हुई खड़ी थी चुपचाप और निरुत्तर
वह नहीं जानती थी
कि वह कौन है?
वह नहीं जानती थी
कि दलित होना होता है कितना बड़ा अपराध
और वह दलित है
उसे नहीं मालूम
कि दलितों को नहीं है
सार्वजनिक स्थलों के उपभोग का अधिकार
उसे नहीं मालूम
कि दलितों के छूने से हो जाते हैं
सार्वजनिक स्थल अपवित्र, अछूत
उसे नहीं मालूम कि
उसके छूने से हो गया है नलकूप अपवित्र
और इसीलिए
किया जा रहा है बार-बार उसे अपमानित
प्रताड़ित
घूरा जा रहा है बार-बार उसे
और किया जा रहा है दंडित
किसी संगीन अपराधी की तरह
डर भय से सहमी
तीन साल की वह बच्ची
रन्नो
अंततः
दम तोड़ देती है
लाज है कि आती नहीं
जाति है कि जाती नहीं
अघाती नहीं
उबियाती नहीं
ऊँच–नीच
जात-पाँत के
रक्तपात से!
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