दाल नहीं गलने दूँगा
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
बहुत हो गया शोषण ज़ुल्म
अब और नहीं छलने दूँगा
आदमखोर उचक्कों की
मैं दाल नहीं गलने दूँगा।
मनमाना मनमौज किसी का
रूआब नहीं चलने दूँगा
किसी ग़रीब को ठगने का
कोई ख़्वाब नहीं पलने दूँगा
सौगंध मुझे हे भारत माँ
अन्याय नहीं होने दूँगा
आदमखोर उचक्कों की
मैं दाल नहीं गलने दूँगा।
बदल रहे जो संविधान को
हरगिज़ नहीं बदलने दूँगा
जीते जी मैं किसी ग़रीब का
अस्तित्व नहीं मसलने दूँगा
सौगंध मुझे हे भारत माँ
नफ़रत नहीं बोने दूँगा
आदमखोर उचक्कों की
मैं दाल नहीं गलने दूँगा।
खिली हुई नूतन कली को
असमय नहीं कुम्हलने दूँगा
नीच अधर्मी मनचलों को
सरेराह नहीं टहलने दूँगा
सौगंध मुझे हे भारत माँ
स्वाभिमान नहीं खोने दूँगा
आदमखोर उचक्कों की
मैं दाल नहीं गलने दूँगा।
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