तुम्हें जब भी देखा
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
तुम्हें
जब भी देखा
बस तुम्हें देखा
एकटक देखा
जी भर देखा
होकर देखा
खोकर देखा
तुम में
तुम्हें
जब भी देखा
तो नहीं देखा
घर
परिवार
समाज
नहीं देखा
कि क्या कहेंगे लोग
क्या होगा मेरा मज़ाक़
तुम्हें
जब भी देखा
तो नहीं देखा
उद्धरण
नतीजा
सबक़
नहीं देखा
अतीत
वर्तमान
भविष्य
नहीं देखा
लोकोक्तियाँ
क़िस्से
मुहावरे
नहीं देखा
अर्थ
काम
समय
नहीं देखा
नहीं देखा
सेहत
शरीर
स्वार्थ
नहीं देखा
तुम्हें
जब भी देखा
तो तुम्हें देखा
तुम्हें
जब भी देखा
तो देखा
आश्चर्य से
लय से
भय से
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