जिसे तुम कविता कहते हो
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बिल्कुल ही एक मज़दूर की तरह
जब से ख़ुद को जोड़ा है
झिंझोड़ा है
दिन रात
आँखों को फोड़ा है
निचोड़ा है
तब जाकर कहीं कुछ पंक्तियाँ लिख पाया हूँ
जिसे तुम कविता कहते हो
दरअसल यह कविता नहीं
मेरी आँखों का छिना हुआ सुकून है
परिश्रम है; पसीना है; ख़ून है!
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सुषमा 2023/09/19 06:10 PM
अंतिम पंक्ति हृदयस्पर्शी है