मैं बड़ा मनहूस निकला
काव्य साहित्य | कविता नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
रात चाहा
दिन चाहा
नींद त्यागी
भूख त्यागी
हँस लिया अपने ही आगे
रोया भी कभी फूटकर
स्वप्न ओ ख़्यालों में यारो कई सोम उपवास रखा
हर समय हर पल उसे ही मैंने अपने पास रखा
हाय मगर क़िस्मत का मारा
मैं बड़ा मनहूस निकला
वो किसी की और निकली—
मैं किसी का और निकला!
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