दोहार्द्धशतक - नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकर’
काव्य साहित्य | दोहे नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
01.
वे ‘नरेन्द्र’ पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।
अंतस में जिनके नहीं, मानवता मौजूद॥
02.
ख़ून मांस भी एक है, जाति योनि भी एक।
फिर ‘नरेन्द्र’ हैं क्यों नहीं, सभी आदमी एक॥
03.
जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।
ब्राह्मण देवता बोलिए, क्यों हैं सूद अछूत॥
04.
शत प्रतिशत अब साथियो, हुई बात ये सिद्ध।
धरती पर दूजा नहीं, मानव जैसा गिद्ध॥
05.
स्वर्ग धरा को मानिए, करिए काम अनूप।
हैं ‘नरेन्द्र’ माता-पिता, स्वयं ईश के रूप॥
06.
माता तो सुमाता है, माँ से बड़ा न कोय।
स्वर्ग, सुख, सुरभोग, सुकूं, माँ-आँचल में होय॥
07.
लिंग भेद के तर्ज़ पर, जिन्हें रहा है बाँट।
समझ मूर्ख मानव उन्हें, एक नदी दो घाट॥
08.
पेड़ पेड़ सब कोय कहें, प्राण कहें ना कोय।
पेड़ जगत के प्राण हैं, पेड़ न काटे कोय॥
09.
मिथ्या होता फूल है, कड़वा होता शूल।
फूल सहज स्वीकार्य हैं, अस्वीकार्य हैं शूल॥
10.
लुट रहा यहाँ आदमी, किसे कहूँ मैं चोर।
चोर हवस की खोपड़ी, नहीं आदमी चोर॥
11.
श्रम से अपने जो रहें, देश, गाँव, घर साधि।
लोग उन्हीं को दे रहें, खच्चर-गधा उपाधि॥
12.
गूँगे बहरे हैं यहाँ, अंधे सारे लोग।
ज़िंदी लाशें जल रहीं, मुर्दे बैठे लोग॥
13.
फलीभूत कर देश को, समझें ख़ुद को धन्य।
मगर कहाँ सुख है इन्हें, सुख के भोगी अन्य॥
14.
क्षण क्षण बीते खेत में, वर्षा हो या धूप।
आय कृषक की ना हुई, श्रम के क्यों अनुरूप?
15.
का छोटन की बात सुने, ख़ुदहि बड़े हम लोग।
अनहद अहम की भावना, लेके जिये ल लोग॥
16।.
इक ही उल्लू से हुआ, ख़ाक गुलिस्तां राम।
बैठें हैं हर शाख़ पर, क्या होगा अंजाम॥
17.
जनमानस कल्याण ही, है जिसका अस्तित्व।
माने उसके ज्ञान का, लोहा सारा विश्व॥
18.
लड़े धर्म के नाम पर, आये दिन इंसान।
देख सियासत धर्म की, हैरत में भगवान॥
19.
गला काटकर जो यहाँ, वहाँ चढ़ायें फूल।
रे ‘नरेन्द्र’ मत छोड़ तू, उनको भोंक त्रिशूल॥
20.
जाति-धर्म के नाम पर, छुआछूत का रोग।
नमक छिड़कते घाव पर, आयें हैं कुछ लोग॥
21.
पूज रहें पाथर यहाँ, पाथर-दिल इंसान।
जीव-जगत पाथर समझ, पाथर को भगवान॥
22.
जिस दिन सच्चा आप भी, पढ़ लेंगे इतिहास।
हो जाएगा आप ही, ख़ाक अंधविश्वास॥
23.
रूप सज्जा या ‘नरेन्द्र’, बदलें लाख लिबास।
मगर आज भी है वही, नारी का इतिहास॥
24.
फ़ैशन के इस दौर में, बदल रहा है गाँव।
कहाँ पुरातन संस्कृति, कहाँ पुरातन ठाँव??
25.
फ़ैशन के इस दौर में, तन ही हुआ नक़ाब।
अर्धनग्नता देख रही, सुंदरता का ख़्वाब॥
26.
लिए तिरंगा हाथ में, लड़ता रहा जवान।
हिंदू-मुस्लिम में रहा, उलझा हिंदुस्तान॥
27.
न्योछावर कर देश पर, अपना जिस्मो-जान।
सदा निभाता गर्व से, अपना फर्ज़ जवान॥
28.
ले ‘नरेन्द्र’ काग़ज़-क़लम, लिख दे इक दो छंद।
जग आनंदित जो करें, वही सच्चिदानंद॥
29.
सुन ‘नरेन्द्र’ तू ध्यान से, बोल रहा मन मंद।
व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व की, अलख विवेकानंद॥
30.
कहत कहत कबिरा चला, इस जीवन को छोड़।
लोग समझ पाए कहाँ, अर्थ, महत्त्व, निचोड़॥
31.
रख ‘नरेन्द्र’ तू स्वास्थ्य का, इतना सा नाॅलेज।
असाध्य-साध्य हर मर्ज़ की, औषधि है परहेज़॥
32।.
सोच समझ विकसित हुई, विकसित हुआ समाज।
वहीं नरेन्दर पी गई, दुनिया लाज-लिहाज़॥
33.
वर्ष गये आते रहें, गया न ग़म का दौर।
किया ‘नरेन्द्र’ आपने, कितना इस पर ग़ौर॥
34.
छोड़ दिसंबर चल पड़ा, सहगामी के संग।
देख जनवरी आ गई, लेकर नयी उमंग॥
35.
सुन ‘नरेन्द्र’ ख़ुद कह रहें, ख़ुदा, गाॅड या ईश।
इक शरीर में आदमी, होते हैं दस बीस॥
36.
माँ हिंदी में जानिए, है अपनी पहचान।
उर्दू मौसी में वहीं, मीठी सरस ज़ुबान॥
37.
होता है जिस छंद में, जितना अधिक प्रवाह।
होता है उतना अधिक, शब्द शब्द पर वाह॥
38.
दिल की जब होगी प्रिये, दिल से कोई बात।
तभी समझ में आएगी, दिल को दिल की बात॥
39.
करना हो तो ही करो, सोच समझ लो ख़ूब।
छोड़ूँगा फिर मैं नहीं, भले कि जाओ ऊब॥
40.
हुआ बावरा यूँ प्रिये, तुम्हें देखकर आज।
यूँ उड़ने जैसे लगें, नील गगन में बाज़॥
41.
काट रहें कैसे ‘नरेन्द्र’, हम मजनूँ ये सर्द।
ये लैलाएँ समझ नहीं रहीं हमारा दर्द॥
42.
तुम बिन मुर्दा हूँ प्रिये, कर लो ज़रा यक़ीन।
यूँ जैसे बिन जल मरें, तड़प तड़प के मीन॥
43.
लगता है हर इक मुझे, लम्हा लम्हा नीक।
होता हूँ जब पास में, प्रिय तेरे नज़दीक॥
44.
दुनिया है किस पर खड़ी, किसने ले ली जान।
किस के ख़ातिर सब मरें, किस पे सब क़ुर्बान॥
45.
सास ससुर फुलकी लगें, चाट लगे ससुराल।
जीरा जल साली लगे, पानी पूड़ी सार॥
46.
बना बहुत स्वादिष्ट हो, पड़ा न ग़र हो नून।
सुलग जाता है क्रोध से, फिर तो सारा ख़ून॥
47.
फ़र्क़ उसे कुछ भी नहीं, पड़ता है मेरे यार।
घाट तिरे माटी नहीं, जिसके आती यार॥
48.
जिसके आगे गले नहीं, किसी और की दाल।
कर सकता बाँका भला, कोई उसका बाल॥
49.
दु:ख-दर्द सब बाँटकर, ख़ुशियाँ मोल ख़रीद।
चलो मनाएँ साथ में, मिलकर होली ईद॥
50.
मात-पिता गुरु आप हैं, गूढ़ ज्ञान के धाम।
शीश नवा कर जोड़कर, शत-शत करूँ प्रणाम॥
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