हिन्दी भाषा की वैश्विक भूमिका
आलेख | साहित्यिक आलेख अंजना वर्मा1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
किसी देश की भाषा उस देश की वाणी होती है और वाणी की महत्ता सर्वविदित है। वही देश का प्रतिनिधित्व करती है और उसीके दर्पण में संपूर्ण देश की छवि देखी जा सकती है। वही देश के इतिहास, साहित्य एवं संस्कृति का संग्रहालय होती है। उसीमें देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य बसता है। अतएव कोई भी भाषा अभिव्यक्ति का साधन मात्र नहीं होती, बल्कि उस देश की ऊर्जा होती है। ज्ञान-विज्ञान, कला, दर्शन, अध्यात्म एवं साहित्य-संस्कृति के आवागमन के लिए खुले दरवाज़े की तरह होती है।
वर्तमान भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली यदि कोई भाषा है तो वह हिन्दी है जो दुनिया-भर में सौ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। भारत में यह सर्वजन संपर्क भाषा की भूमिका निभा रही है। इस देश में तीन चौथाई से अधिक लोग हिन्दी बोलते-समझते हैं तथा अपने दैनिक जीवन में कमोबेश उसका प्रयोग करते हैं। विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में मंदारिन (चीनी) भाषा के बाद हिन्दी का ही स्थान आता है। भारत और चीन– ये दो ऐसे देश हैं जो तेजी से विश्व-पटल पर उभर रहे हैं और अपनी पहचान बना रहे हैं। निस्संदेह इसमें इन देशों की बढ़ती हुई जनसंख्या मुख्य कारक सिद्ध हो रही है।
अब विश्व-पटल पर हिन्दी की ख़ास पहचान बन गई है। यह पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, मारीशस, फ़िजी, सूरीनाम त्रिनिदाद एवं टुबैगो, गुयाना में तो बोली ही जाती है, इन देशों के अतिरिक्त यह इंग्लैंड, अफ़गानिस्तान, सिंगापुर, मालदीव, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, चीन, जापान, कोरिया, कनाडा, अमेरिका, दक्षिण अफ़्रीका आदि देशों तक में बोली जाती है। मारीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद जैसे देश तो हिन्दीभाषियों द्वारा ही बसाये गये हैं। फ़िजी में चार कार्यालयी भाषाओं में एक हिन्दी को भी स्थान दिया गया है। थाइलैंड और टुबैगो में दफ़्तर की भाषा भले ही अंग्रेज़ी हो, परंतु स्पैनिश और फ़्रेंच के साथ-साथ हिन्दी और भोजपुरी को भी रखा गया है। सिंगापुर में भी अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिन्दी का भी प्रयोग होता है। संयुक्त अरब अमीरात में 22 लाख से ज़्यादा भारतीय हैं। यहाँ यह मान्यताप्राप्त अल्पसंख्यक भाषा के रूप में है। अमेरिका में 30 लाख से ज़्यादा भारतीय अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिन्दी का प्रयोग करते हैं। इस तरह हिन्दी विश्व के 140 महाद्वीपों और देशों में प्रयुक्त हो रही है।
वर्तमान समय में हिन्दी में ही यह सामर्थ्य है कि वह वैश्विक स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकती है। वे अहिन्दीभाषी, जो अपनी मातृभाषा के बाद यदि किसी भाषा का प्रयोग करना पसंद करते थे तो वह अंग्रेज़ी ही होती थी, अब हिन्दी का ही व्यवहार करते हैं। उन लोगों को भी अब इसकी ज़रूरत समझ में आ रही है। इसीलिए जिन क्षेत्रों में हिन्दी पर लोग नाक-भौंह सिकोड़ते थे वहाँ भी यह न केवल बातचीत का माध्यम बनी है, बल्कि वहाँ इसका अध्ययन-अध्यापन हो रहा है।
भारत एक बहुत बड़ा बाज़ार है और बाज़ार की भाषा वही होती है जो निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक बोली जाती है। हिन्दी ऐसी ही भाषा है जो सभी वर्गों में अपनी पैठ बना चुकी है। स्वदेश से लेकर विदेश तक इसका अस्तित्व बना हुआ है। चूँकि यह विश्व स्तर तक पहुँच चुकी है, इसलिए विश्व बाज़ार की भी भाषा बन गयी है। विदेशी उत्पादकों को भी इसकी ज़रूरत पड़ रही है। वे भी अपने प्रचार की भाषा के रूप में इसे इस्तेमाल कर रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अंग्रेज़ी में बोलबाला है, परंतु जन सामान्य धरातल पर उतरने के लिए हिन्दी का ही सहारा लेना पड़ता है। अतएव विदेशी उत्पादों का हिन्दी में प्रचार हो रहा है। भारतीय उत्पादों के लिए प्रचार-भाषा तो यह है ही।
एक बाज़ार का स्वरूप वह भी है जो हिन्दी भाषा का बाज़ार है। हिन्दी से जुड़े अनुवाद कार्य का रोज़गार काफ़ी विकसित है। जैसे– बातचीत में, शिक्षा, सांस्कृतिक संबंध, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, धर्म, दर्शन एवं साहित्य में अनुवाद के अवसर हैं। ये रोज़गार भारत के अन्य देशों से सांस्कृतिक संबंधों को भी बढ़ा रहे हैं। अनुवाद कार्य के कारण ही प्राचीन काल से भारत के ज्ञान-विज्ञान, कला, दर्शन, साहित्य-संस्कृति आदि का परचम विश्व में लहरा सका है। जब दो भाषाभाषी आपस में मिलते हैं तो उनके विचारों के आपसी आदान-प्रदान के लिए दुभाषिया की ज़रूरत पड़ती है। हिन्दी दुभाषियों के कारण भी हिन्दी का महत्व बढ़ रहा है। यह बड़े सुख और संतोष की बात है कि जहाँ-जहाँ हमारा साहित्य और हमारी कलाएँ फैल रही हैं, वहाँ हिन्दी और भारत के प्रति प्रेम भी फैल रहा है और वहाँ हिन्दी बोलने और पढ़ने की ओर भी विदेशियों का रुझान बढ़ रहा है।
विश्व बाज़ार में हिन्दी फ़िल्मों और हिन्दी गानों की अपनी एक ख़ास जगह बन गयी है। दुनिया के कई देशों में हिन्दी फ़िल्मों की माँग है और हिन्दी गाने काफ़ी पसंद किये जाते हैं। एक ज़माने में रूसी लोग राजकपूर की फ़िल्मों और उनके गानों के दीवाने थे। अब भी भारतीय फ़िल्मों और गानों को मनोरंजन की श्रेणी में सबसे ऊपर रखा जाता है; क्योंकि उसमें दिल बहलाने के जितने मसाले भरे रहते हैं उतने दुनिया के किसी और देश की फ़िल्म में नहीं। हिन्दी फ़िल्मों की बॉक्स आफ़िस पर सफलता की ताक़त के कारण ही हॉलीवुड वाले अपनी फ़िल्मों को हिन्दी में डब करवा रहे हैं और व्यवसायिक सफलता के लिए हिन्दी फ़िल्मों का निर्माण भी करवा रहे हैं। प्रवासी भारतीयों के कारण भी विदेशों में हिन्दी फ़िल्मों का स्वागत होता है। आज भारत पाकिस्तान, चीन, पोलैंड, मिस्र, अफ़गानिस्तान, ताइवान, पेरू, जर्मनी, नाइजीरिया समेत कई अन्य हिन्दीभाषी देशों में बॉलीवुड के असंख्य प्रेमी हैं।
भारत में हिन्दी के प्रति भले ही लोगों का लगाव कम हो रहा हो, पर जन संपर्क भाषा के रूप में इसकी ज़रूरत तो बढ़ती ही जा रही है। विदेशों में इसका प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है और वहाँ इसे शौक़ से ही अपनाया जा रहा है। केवल अमेरिका के ही 32 विश्वविद्यालयों एवं 15 शिक्षण संस्थानों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। इनके अतिरिक्त फ़िजी, मारीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद व टुबैगो, संयुक्त अरब अमीरात तथा लंदन, कैम्ब्रिज व यॉर्क यूनिवर्सिटी समेत हिन्दी के 115 शिक्षण संस्थान हैं।
प्रवासी भारतीयों द्वारा हिन्दी में प्रवासी भारतीय साहित्य भी रचा जा रहा है। जिन देशों में भारतीय बस रहे हैं या जहाँ हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है, वहाँ रचनाशीलता जारी है। जिन देशों को गिरमिटिया मज़दूरों ने बसाया, जैसे-मारीशस, सूरीनाम, फ़िजी, गुयाना, त्रिनिदाद व टुबैगो, वहाँ तो हिन्दी अपनी पूरी संस्कृति के साथ विराजमान है। इनके अतिरिक्त भी उन देशों में जहाँ भारतीय बड़ी संख्या में हैं, या जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रह रहे है अथवा उन्होंने अपने बसने वाले देश की नागरिकता ले ली है–उन सभी देशों में हिन्दी गद्य एवं पद्य लेखन की परंपरा चल रही है। आरंभ में इसे महत्व नहीं दिया गया, परंतु अब प्रवासी साहित्य चर्चा में आ गया है। इसमें प्रवासी भारतीयों के जीवन का यथार्थ है। इस कारण यह हिन्दी साहित्य का एक अविभाज्य हिस्सा बन गया है।
हिन्दी भाषा अपने कई संस्थानों एवं समितियों द्वारा अपने को मज़बूत बना रही है। अखिल विश्व हिन्दी समिति, अंतरराष्ट्रीय कला मंच (मुरादाबाद), अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति, विश्व हिन्दी न्यास, हिन्दी यू एस ए के प्रयासों से हिन्दी विदेशों में फैल रही है।
हिन्दी की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ विदेशों से भी प्रकाशित हो रही हैं जिनमें त्रिनिदाद से 'ज्योति', जापान से 'ज्वालामुखी', संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से 'विश्व विवेक', संयुक्त अरब अमीरात से 'अभिव्यक्ति', इंग्लैंड से 'पुरवाई', कैनेडा से 'साहित्य कुंज' आदि। हिन्दी के कई साहित्यिक आर्काइव्स हैं जिनके द्वारा हिन्दी साहित्य को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ई-बुक्स तथा ई-पत्रिकाओं द्वारा भी हिन्दी विश्व-साहित्य के समकक्ष अपनी जगह बना चुकी है।
कोई भी आयाम ऐसा नहीं है जहाँ हमारी हिन्दी के क़दम न पड़े हों। दूरदर्शन, अंतर्जाल के माध्यम से भी यह दुनिया की अग्रणी भाषा बनती जा रही है। हिन्दी ख़बरें और हिन्दी के कार्यक्रम विदेशों में हिन्दी-भाषियों द्वारा देखे जाते हैं। भारतीय साहित्य, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म, गायन-नृत्य आदि को दुनिया में फैलाने और लोकप्रिय बनाने में हिन्दी की अग्रणी भूमिका है जो हिन्दी चैनलों द्वारा निभायी जा रही है।
आज हिन्दी भाषा वैश्विक पटल पर भारत की गरिमामयी छवि अंकित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आदि काल से भारत विश्व-गुरु रहा है, पर अंग्रेज़ों ने सँपेरों और मदारियों का देश कहकर इसकी छवि मटियामेट करने की कोशिश की। अब हिन्दी के द्वारा दुनिया को भारतीय सांस्कृतिक संपदा, दर्शन और ज्ञान का परिचय मिल रहा है।
इस देश से रोटी की तलाश में लोग बाहर जाकर बस रहे हैं, यह भले ही इस देश के लिए शोचनीय हो; परंतु इससे एक लाभ यह हो रहा है कि भारत की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, दर्शन की जड़ें अन्य देशों की धरती में समा रही हैं। भारत आदि काल से साहित्य, गणित, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, गायन-वादन, नृत्य व नाट्यशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, अध्यात्म, कैलेंडर, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि में अग्रणी रहा है। हिन्दी भाषा और हिन्दीभाषियों तथा हिन्दी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा भारतीय ज्ञान विदेशों में भी सभीको अचंभित कर रहा है। एक अतुल सांस्कृतिक विरासत वाले देश के रूप में इसकी पहचान बनी है। भारत के लोकतांत्रिक विचार, एक अटूट परिवार और उम्र-भर निभाये जाने वाले दाम्पत्य संबंध विदेशियों के लिए स्पर्धा और आश्चर्य के विषय बने हुए है।
विदेशों में भारतीयों को एकजुट करने में हिन्दी की ही मुख्य भूमिका है। भारत के कई प्रान्तों से अनेक भाषाभाषी विदेश जा रहे हैं। परंतु वहाँ आपसी भाषा हिन्दी ही बन जाती है। पर्व-त्योहारों में तो ख़ासकर हिन्दी भाषा और हिन्दी लोकगीत लोकप्रिय हो उठते हैं।
विश्व-भर में हिन्दी के प्रसार का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह विदेशों मे भारतीय ज्ञान-विज्ञान, साहित्य एवं संस्कृति, दर्शन-अध्यात्म का बीजारोपण विदेशों में कर रही है। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की अंधी दौड़ में अपनी भाषा और अपनी संस्कृति की जो उपेक्षा अपने ही देश में हो रही है (और इसको दफ़न करने का एक गुप्त षड्यंत्र भी चल रहा है), संस्कृति-संपदा के इस क्षरण की भरपाई शायद उन प्रवासियों द्वारा भारत से दूर विदेशी मिट्टी पर हो जिन्होंने इसे अपनाये रखा है। हम कुछ आशान्वित तो हो ही सकते हैं कि वहाँ से नवांकुर फूटेंगे और हिन्दी भाषा भारतीय सभ्यता-संस्कृति को सुरक्षित रखने की महती भूमिका निभायेगी।
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