अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

पहचान

राम जी बाबू काफ़ी सुखी-संपन्न व्यक्ति थे जिनकी उम्र साठ से ऊपर हो चली थी। दोनों बच्चे सेटल कर चुके थे और उन्होंने दोनों को विदेश जाने और प्रवासी बनने से नहीं रोका था। लेकिन इन्हें अपनी भूमि से इतना प्रेम था कि अपना घर और अपनी ज़मीन छोड़कर विदेश जाने के लिए तैयार नहीं थे। अपने घर पर रहते हुए आराम से जीवन गुज़ार रहे थे। उनके क़रीबी दोस्तों में थे शैलेंद्र जी और किशोर जी। अक़्सर सबकी एक साथ बैठकी होती तो चाय-नाश्ते के साथ घंटों गप्पबाज़ी होती। 

नौकर-चाकर की कमी न थी, लेकिन अपने पारिवारिक जन के नाम पर कोई न था। अत: अकेले ही रहते थे।

कोविड की दूसरी लहर अपनी चरम सीमा पर थी। रोज़ कई लोग उसके शिकार हो रहे थे। इसी बीच राम जी बाबू को खाँसी ने जकड़ लिया। घबराए हुए वे डॉक्टर के यहाँ गए तो डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाएँ लिखीं और वे जब क्लीनिक से बाहर आ रहे थे तो शैलेंद्र जी ने उन्हें देख लिया। उनके मन में शंका हो गई कि कहीं इन्हें कोविड ने तो नहीं जकड़ लिया?

रामजी बाबू ने खाँसी की दवा खाई और वे दो-तीन दिनों में ठीक भी हो गए। अच्छे-ख़ासे तंदुरुस्त राम जी बाबू सोफ़े पर ‌बैठे हुए थे। उनकी आदत थी समय काटने के लिए फोन कर लिया करते थे। आज तबीयत बिल्कुल ठीक लग रही थी तो उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वह कोविड के चंगुल में नहीं फँसे। पूरे संतोष के साथ उन्होंने शैलेंद्र जी को फोन मिलाया। घंटी होती रही लेकिन शैलेंद्र जी ने नहीं उठाया; क्योंकि उन्होंने रामजी बाबू को क्लीनिक से बाहर निकलते हुए देखा था। अब उन्हें विश्वास हो गया कि रामजी बाबू कोविडग्रस्त हैं और सहायता के लिए फोन कर रहे हैं। फिर उन्होंने फोन किशोर जी को मिलाया तो उन्होंने भी फोन नहीं उठाया। ऐसा ही कुछ विचार उनके मन भी में भी आया कि ज़रूर किसी न किसी मुसीबत में हैं राम जी बाबू कि फोन कर रहे हैं।

इधर राम जी बाबू सोचने लगे कि क्या बात है कि मेरे मित्रों ने फोन नहीं उठाया? कहीं वे कोरोना वायरस से ग्रस्त तो नहीं हो गये? तो जब लॉकडाउन टूटा और सब लोग अपने-अपने घरों से सब्ज़ी-भाजी के लिए बाहर निकले तो रामजी बाबू भी पैदल चल पड़े शैलेंद्र जी के यहाँ। उनका घर थोड़ी ही दूर पर था। शैलेंद्र जी भी बाहर निकलने की तैयारी में थे। जैसे ही उन्होंने रामजी बाबू को दरवाज़े पर देखा तो वे चौंक पड़े, "आप?"

राम जी बाबू ने कहा, "तुम इस तरह क्यों चौंक पड़े? क्या मैं तुम्हारे यहाँ आ नहीं सकता हूँ?"

"नहीं-नहीं आप ज़रूर आ सकते हैं।"

रामजी बाबू ने कहा, "तुमने मेरा फोन नहीं उठाया तो मुझे डर लग गया कि कहीं तुमको कोविड ने तो नहीं जकड़ लिया? इसीलिए मैं देखने चला आया कि तुम कैसे हो? तुम्हें बाज़ार के लिए निकलते देखकर बहुत अच्छा लगा। चलो, अब जाता हूँ अपने घर। यह समय नहीं है घूमने का कि मैं तुम्हारे यहाँ बैठूँ और बातचीत करूँ।"

यह कहकर राम जी बाबू अपने घर की ओर चल दिए। शैलेंद्र जी मन ही मन बहुत लज्जित थे कि उन्होंने अपने दोस्त के विषय में क्या सोचा लिया? वह सहायता नहीं करना चाह रहा था और राम जी बाबू उसकी सहायता के लिए उसके द्वार पर आ पहुँचे थे।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे

गीत-नवगीत

कविता

किशोर साहित्य कविता

रचना समीक्षा

ग़ज़ल

कहानी

चिन्तन

लघुकथा

साहित्यिक आलेख

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं