तोते का स्कूल
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता अंजना वर्मा23 Jan 2019
तोते ने जंगल में खोला
पशु-पक्षियों का स्कूल।
शिष्यों को जुटते देखा तो
तोता गया गर्व से फूल।
हाथी दादा आये, बोले,
"मैं अब कैसे बैठूँगा?
मेरे नाप की दरी मिली ना
खड़े-खड़े ही पढ़ लूँगा।"
फिर जिराफ जी आये, बोले
"मेरी तो गर्दन लंबी है।
गुरुजी बैठेंगे फुनगी पर
तो मेरे मुँह की सीध में।"
हिरन आ गया, बोला,"भाई
मेरा कद तो ठीक है।"
दरियाई घोड़ा भी आया
बोला,"दिक्क़त मुझे नहीं।"
खरहा आया, बोला, "मेरे
कान तो काफ़ी लंबे है।
मैं तो कूद-फाँद करता भी
सब सुन लूँगा, सीखूँगा।"
सारस बोला, "मैं तो यारो!
खड़ा-खड़ा ही पढ़ लूँगा।"
तभी शेर जी आये, बोले,
पहले आसन मुझको दो।
उन्हें देख सबके दिमाग़ की
चिड़िया तो गई उड़।
सभी जानवर भाग चले फिर
गुरु जी हो गये फुर्र।
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