स्कॉटलैंड में बादल : कुछ चित्र
काव्य साहित्य | कविता अंजना वर्मा15 Sep 2020 (अंक: 164, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
(1)
अलसाये- निंदाये बादल
हरी पहाड़ियों को
अपने अँकवार में भरे हुए थे
फिर न जाने क्या याद आया
जागे-न-जागे
पर चल दिये आगे
मन अपना वहीं छोड़कर
कहाँ?
आगे कहीं भी
पर रह गयी थी
यादों की धुंध फैली हुई शिखरों पर
पहाड़ियाँ अब भी सो रही थीं
(2)
बादलों की नावें
आसमान की नीली झील में
पहाड़ों के द्वीपों पर लंगर डालती हैं
पर रुकती नहीं अधिक देर तक
अथक नाविक है मेघ
ढूँढ़ते हुए सत्य का किनारा
अपने को मिटा देगा
अपने को शून्य बना देना ही
अनन्त होना है
शून्यता ही मंज़िल है ज्ञान की
(3)
पहाड़ों के शिखर-खंभों को पकड़कर
गोल घूम रहे हैं बादल- बच्चे
उजले-उजले झबलों में
खिलखिलाते हैं
गिरते भी हैं
फिर उठकर दौड़ते हुए चल देते हैं आगे
दूसरे शिखर-खंभों पर
वहाँ घूमेंगे गोल-गोल
(4)
मेघ-यात्री
आसमान के नीले रेगिस्तान में
पर्वत- शिखरों के खजूर-पेड़ों के पास
नखलिस्तान में
सुस्ताते हैं कुछ देर
सिर्फ आगे जाने के लिए
(5)
भरी हुई नीली आँखों-सा
बदली-भरा आकाश है नीला
अब बरसीं आँखें
तब बरसीं
लो! बरसी आँखें
बरस गयीं!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
दोहे
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
रचना समीक्षा
ग़ज़ल
कहानी
चिन्तन
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं