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जो गीत तुम्हारे अन्दर है

जो गीत तुम्हारे अन्दर है
मैं गीत वही तो गाता हूँ,
व्यथा तुम्हारे साथ चली जो
मैं हाथ उसी के थामे हूँ।
प्यार तुम्हारे पास रहा जो
मैं खोज उसी की करता हूँ,
जो सौन्दर्य हमारे बीच रहा
मैं आसक्त उसी पर होता हूँ।
जो सम्बन्ध हमारे बीच सजे हैं
मैं राग उन्हीं का बना हुआ हूँ,
जो मन के कोनों पर बैठा है
मैं संगीत उसी को देता हूँ।
जो त्याग-तपस्या में आता है
श्रद्धा उसी पर रखता हूँ,
कुछ अन्दर ऐसा बैठा है
जो प्रश्न अनेकों करता है।
इस जीवन की परिक्रमा में
गीत कई मैं गाता हूँ।
वर्षों समय के दाँतों की
चुभन लिए मैं चलता हूँ,
जो पीड़ा सबके अन्दर है
संगीत उसी में भरता हूँ।

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