अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं एक छोटा सा नेता हूँ

मैं एक छोटा सा
नन्हा सा प्यारा सा 
अदना सा नेता हूँ
आप लोगों की मेहरबानी से 
देश का एक नाव
मैं भी खेता हूँ
आप कहेंगे नाव खेना
ये कौन सी नेतागिरी है
तो बड़े नेताओं की तरह
मैं कभी किसी को 
भाषणों में नहीं उलझाता
पहेलियाँ  नहीं बुझाता
ये लो मैं ख़ुद ही खुलकर बतलाता हूँ
केन्द्रीय भ्रष्टाचार प्रोत्साहन मंत्रालय का
मैं केन्द्रीय राज्यमंत्री हूँ
जनता का सेवक हूँ
सरकार का संतरी हूँ
भ्रष्टाचार पूरी ईमानदारी से फैलाता हूँ
भ्रष्ट मंत्रियों की भ्रष्टता में
कोई ख़लल न पड़े
सरकार को जनता की
निगाहों से बचाता हूँ
सरकार के विरुद्ध लोग
कहीं एक न हो जाएँ
जनता को जनता से उलझाता हूँ
जाति-धरम ऊँच-नीच का
मुद्दा उठाता हूँ
ज़रूरत पड़ी तो 
क्षेत्रियता और विकास की
हवा बनाता हूँ
अपने ही नेता पर
अपने ही छद्मभेषी कार्यकर्ता से
सुरक्षित हमले करवाता हूँ
मुँह पर स्याही फिंकवाता हूँ
संकेत मिलता है
तो दंगे भी करवाता हूँ
क्या करूँ
सरकारी मंत्री हूँ
सरकार हित में सोचना पड़ता है
विकास की तरफ 
जनता के बढ़ते हुए क़दम
रोकना पड़ता है
अब देखिये न आजकल 
फूट डालो कुर्सी बचाओ मंत्रालय का
अतिरिक्त कार्यभार भी मेरे ही ऊपर है
सच पूछिये तो चिन्ता के मारे
ऐशो आराम भी दूभर है
ऊपर से जनता भी बाज़ नहीं आती 
गालियाँ सुनाने से
कितना दुम हिलाने 
और तलवे चटवाने के बाद
एक कुर्सी क्या दिलवाती है
ज़रा सी बात न बिगड़ी कि
चूकती नहीं है 
हमारे विरुद्ध नारे लगाने से
हमारे पुतले जलाने से
अरे प्रजातंत्र के नागरिकों
पाँच दिनों की कुर्सी के बदले
पचहत्तर तलवे चटवाते हो
कभी सोचा है तुमने 
आख़िर क्या लाभ है
ऐसी डगमगाती कुर्सी दिलवाने से
मैं तुम्हारे लिए  कुछ अच्छा
कभी सोंचूँ तो कब सोंचूँ
मुझे फ़ुर्सत ही कहाँ है
सरकार की दुम सहलाने से
जनता के आगे  दुम हिलाने से
अपनी असुरक्षित 
अस्थायी कुर्सी बचाने से
इसीलिए मेरा आग्रह है
आप लोगों की मेहरबानी से 
मैं तो महज़ देश की 
एक छोटा सी नाव खेता हूँ
मैं एक छोटा सा
नन्हा सा प्यारा सा 
अदना सा नेता हूँ

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अतिथि
|

महीने की थी अन्तिम तिथि,  घर में आए…

अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
|

सलाद, दही बड़े, रसगुल्ले, जलेबी, पकौड़े, रायता,…

अनंत से लॉकडाउन तक
|

क्या लॉकडाउन के वक़्त के क़ायदे बताऊँ मैं? …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

सांस्कृतिक आलेख

कविता

किशोर साहित्य कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

दोहे

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

बाल साहित्य कविता

नज़्म

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं