कृषि के चैती दोहे
काव्य साहित्य | दोहे राजनन्दन सिंह1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
फागुन बीता आ गया, चैत विरह का मास।
ठहरा-ठहरा वन लगे, चहुँ दिशि लगे उदास॥
मंजर डारी से लगे, भँवरा गुण-गुण गाए।
रंग-बिरंगी तीतली, इधर-उधर मँडराए॥
अमुआ पर मंजर लगे, मधुरस वर्षण होय।
पवन बहे सुगंधसना, मह-मह मन सब कोय॥
विरह बिखेरे ये पवन, उन बिन रहा न जाए।
पी-पी करे पपीहरा, भँवरा मन तड़पाए॥
किस्म-किस्म की बालियाँ, खेतों में तैयार।
रंग कनक झनझन बजे, पछिया बहे बयार॥
गेहूँ पककर है खड़ी, सरसों राई साथ।
मसुरी मटर संग पकी, है अलसी के माथ॥
गेहूँ की बाली खड़ी, झूम-झूम लहराए।
खेती अपनी देखि के, कृषक मन हरषाए॥
हरियाली गुम हो गई, कनक बिछे हैं खेत।
वनदेवी लछमी बनी, बैठी कृषक हेत॥
मूँग उड़द तैयार है, मटर जौ खेसारी।
लाने की खलिहान में, शुरु हुई तैयारी॥
गेहूँ सरसों झूर है, झनझन बाजे गान।
मानो कंचन झूमका, सुंदरियों के कान॥
कलरव करती चिड़इयाँ, जंतू करते शोर।
उनमुन करते मेमने, जाग हुई है भोर॥
घर से निकली कृषकी, सुबह-सुबह अलसाय।
लिये बगल में टोकरी, रबी उखाड़न जाए॥
मन में गाती कृषकी, चली खेत की ओर।
नयना में जादू भरे, डारे हिये हिलोर॥
यौवन आँचल में बँधी, कटि आँचल के छोर।
बाँधे कर की चूड़ियाँ, घूँघट डारे थोड़॥
हँसी ठिठोली खेलती, चली कृषिकी घान।
आँचल में यौवन लिये, अधर मधुर मुसकान॥
ये कृषक कामिनीयाँ, छेड़े मन के तार।
उपर से पछीया बहे, महुआ महके डार॥
हरष-हरष के खेत में, पहुँच रहे किसान।
ज्यों खेमें में जीतकर, पहुँचे वीर जवान॥
बाली कटकर खेत से, ज्यूँ पहुँचे खलिहान।
दौनी की तैयारियाँ, संग खुशी के गान॥
ज्यों-ज्यों बाली कट रहे, खाली होते खेत।
फिर तैयारी जोत की, नव हरियाली हेत॥
कारी हरियारी मकइ, नवल पात हर गाछ।
पीपल पाकड़ पर खिली, शीशम पर नव बाँछ॥
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