अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

आहत होती सच्चाई

क़दम क़दम पर धोखाधड़ी
बित्ते- बित्ते पर चतुराई
कुटिल प्रफुल्लित इंच-इंच पर
आहत होती सच्चाई
 
आसमान से ऊँचा भाषण
बातों के सब वामन वीर
वस्तुतः शातिर गद्दारी
मक्कारी के माहिर मीर
 
ज्ञान उगलते आत्म ज्ञानी
धूर्त धरम के व्यापारी
अवसर पा वाचक बन जाते
तारक-ब्रह्म दुराचारी
  
भोजन, बस्ता, वस्त्र, पुस्तकें
और सायकिल दिखते दान
नहीं दिखते विद्यालय में
संस्कार, विद्या, बलिदान
 
व्यर्थ की बातें ख़ूब पढ़ाते
लिखवाते और रटवाते
अंतर्मन से चौकस रहते
मूल बात उलझा जाते
 
जिनकी वाणी जितनी मीठी
जो दिखता जितना बड़ा दयाल
उनका हृदय उतना काला
मुस्काता  विषभरा व्याल
 
समाचार टीवी पर पढ़ते,
जैसे कोई मुँह चिढ़ाय
 प्रफ्फुलित हो कोई उल्लू
उचक-उचक कर हमें डराय
 
तिल ख़बर का ताड़ खींच
कर खंड-खंड घंटों बेचे
बेहुदे  अनुप्रास  लगा
दुःखंड-काव्य ही कर देते
 
जनहित में झूठ अनशन-भाषण
नारेबाज़ी और चक्का जाम
स्वारथ-सौदा सच चुपके, छुपके
निर्लज्ज बनकर सारे आम
 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

मधुसूदन कुमार साक्य 2021/08/30 09:53 PM

बहुत ही सारगर्भित

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

सांस्कृतिक आलेख

कविता

किशोर साहित्य कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

दोहे

सम्पादकीय प्रतिक्रिया

बाल साहित्य कविता

नज़्म

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं