कर्तव्यनिष्ठता
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह1 Jul 2020 (अंक: 159, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
ठीक है
धन का लालच
तुम्हें अपने कर्तव्य से
डिगा नहीं सकता
अच्छी बात है
तो फिर गुमान
अपनी ग़रीबी पर क्यों?
अपने त्याग पर करो
क्योंकि अच्छी बात
तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठता है
तुम्हारा त्याग है
तुम्हारा अडिग होना है
तुम्हारी ग़रीबी नहीं
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
- अंकल
- अंतराल
- अंधभक्ति के दरवाज़े
- अदृश्य शत्रु कोरोना
- अबला नहीं है स्त्री
- अव्यवस्था की बहती गंगा
- अहिंसा का उपदेश
- आज और बीता हुआ कल
- आत्मसंघर्ष
- आहत होती सच्चाई
- ईश्वर अल्लाह
- उत्पादन, अर्जन और सृजन
- उत्सर्जन में आनन्द
- उपेक्षा
- एक शब्द : नारी
- कर्तव्यनिष्ठता
- कविता और मैं
- कोरोना की तरह
- क्षेत्रियता की सीमा
- गंदी बस्ती की अधेड़ औरतें
- गेहूँ का जीवन मूल्य
- गौ पालकों से
- घर का नक़्शा
- घोंसला और घर
- घोंसलों से उँचा गाँव
- चिड़ियों की भाषा
- चुप क्यूँ हो
- जगह की कमी
- जब कोई दल बदलता है
- जब से बुद्धि आई है
- जाते-जाते हे वर्ष बीस
- जीवन का उद्देश्य
- ज्ञान जो अमृत है
- झूठ का प्रमेय
- टॉवर में गाँव
- तरक्क़ी समय ने पायी है
- तवायफ़ें
- तुम कौन हो?
- तुम्हारी ईमानदारी
- तुम्हारी चले तो
- दिशा
- दीये की लौ पर
- देश का दर्द
- नमन प्रार्थना
- नारी (राजनन्दन सिंह)
- पत्थर में विश्वास
- पुत्र माँगती माँ
- पूर्वधारणाएँ
- प्रजातंत्र में
- प्रतीक्षा हिन्दी नववर्ष की
- प्राकृतिक आपदाएँ
- प्रार्थना
- फागुन आया होगा
- फूल का सौदा
- फेरी बाज़ार
- बक्सवाहा की छाती
- बदबू की धौंस
- बिल्ली को देखकर
- बोलने की होड़ है
- बोलो पामरियो
- भारतीयों के नाम
- मक्कारों की सूची
- मन का अपना दर्पण
- महल और झोपड़ी
- महा अफ़सोस
- माँग और पूर्ति का नियम
- मुफ़्त सेवा का अर्थशास्त्र
- मूर्खता और मुग्धता
- मूर्ति विसर्जन
- मेरा गाँव
- मेरा घर
- मेरा मन
- मेरे गाँव की नासी
- मैं और तुम
- मैं और मेरा मैं
- मैली नदी के ऊपर
- यह कोरोना विषाणु
- यह ज़िंदगी
- राजकोष है खुला हुआ
- रावण का पुतला
- लुटेरे
- शत्रु है अदृश्य निहत्था
- शब्दों का व्यापार
- सचेतक का धर्म
- सच्चाई और चतुराई
- सत्ता और विपक्ष
- समभाव का यथार्थ
- सरदी रानी आई है
- सामर्थ्य
- साहित्यहीन हिन्दी
- सीमाएँ (राजनन्दन सिंह)
- सुख आत्मा लेती है
- सुविधामंडल
- स्मृतिकरण
- हमारी क्षणभंगुर चाह
- हमारी नियति
- हर कोई जीता है
- ग़रीब सोचता है
- ज़िंदगी (राजनन्दन सिंह)
- ज़िंदगी के रंग
- ज़िंदगी बिकती है
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं