महल और झोपड़ी
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
तुम्हारे महल के सामने
वह जो एक झोपड़ी खड़ी है
तुम उसे उजाड़ देना चाहते हो
तुम्हें लगता है
वह तुम्हारे बंगले की
शोभा और शान घटा रही है
वास्तव में वह झोपड़ी
एक छोटी लकीर है
तुम्हारी बड़ी रेखा के सामने
घास-फूस का एक अलंकार
जो तुम्हारे महल की
शोभा और शान वस्तुतः
घटा नहीं, बढ़ा रही है
सोचो
किसी दिन वह हटकर
ठीक तुम्हारे महल का हीं रूप ले ले
तो तुम्हारी शान
दो भागों में बँट जाएगी
तुम्हारी शान जितनी आज है
उससे आधी रह जाएगी
और इस तरह तुम्हारे ईर्द-गिर्द
महलों की संख्या
जैसे-जैसे और जितनी
बढ़ती जाएगी
तुम्हारी शान
वैसे-वैसे उतने हीं भागों में
बँटती जाएगी
घटती जाएगी
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