रावण का पुतला
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
रावण का पुतला
अचानक बोल पड़ा
ठहरो दाहक
सुनो कलाकार
मैं रावण का पुतला हूँ
रावण जैसा ही कथित पापी दंभी
हठी निर्भय विशाल और सजा-धजा
जलने को तैयार
अब तुम बताओ
तुम राम के क्या हो?
कोई उत्तराधिकारी
पुतला, प्रतीक या महज़ वेशधारी?
अपनी मर्यादा ख़ातिर
अपने माता-पिता पत्नी भाई
किसी भी स्वजन की परवाह
न करनेवाला कहाँ मेरा शत्रु
तुम्हारा श्रेष्ठ राम
और पुतला जलाने को
भाड़े पर बुलाए हुए कहाँ तुम
अरे अपने श्रद्धेय राम का न सही
कुछ मेरा मान रखा होता
मैं राम के शत्रु का पुतला हूँ
तुम्हारे राम के शत्रु का
चल बता
कितने गुण हैं तुझमें राम के
चुप क्यों है कुछ बोल
और यदि नहीं पता तो चल
हट मेरे सामने से
एक बात सुन और ध्यान से सुन
ये पुतला दहन का अधिकार
मेरे श्रेष्ठ शत्रु केवल राम को है
तुझ जैसे किसी रास्ते राम को नहीं
इस उमड़ी भीड़ में नज़र घुमाओ
एक दुसरे से पूछो एक दुसरे में ढूँढ़ो
है कोई सही में श्रेष्ठ राम
तो आगे आओ
मेरा पुतला जलाओ
वरना पीछे हटो
और जाओ अपनी जगह पर बैठ जाओ
अब यह पुतला जलाने का अधिकार
मेरे भाई विभिषण को है
विभिषण..
मेरा कुलद्रोही भाई
मेरा उत्तराधिकारी
तू कहाँ जा बैठा है रे!
किसके साथ वहाँ उँचे मंच पर
चल आ नीचे उतर
छीन ले इस नक़ली राम के हाथों से
असली अग्निवाण
मेरे पुतले पर चला
यह भीड़ तो तमाशाबीन है
तू आ थोड़ा और आगे आ
अपने भाई होने का
कर्तव्य निभा
मुझे अग्नि दे
मेरे पुतले को आग लगा
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