फेरी बाज़ार
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पुराने सेक्टर्स फाटक बंद मुहल्ले
अब शांत रिहायशी नहीं रहे
फेरी बाज़ार हो गए हैं
खुलने का समय
सुबह छः बजे से
रात्रि साढ़े ग्यारह बजे
उँची आवाज़ें
सभी के हाथ लाउडस्पीकर
सब्ज़ी वाला कबाड़ी वाला
कुर्ती वाला साड़ी वाला
पौधे वाला पानी वाला
फटफटिया छिछोड़े मनमानी वाला
डोसा वाला चाट वाला
दरी वाला खाट वाला
उफ्फ!
शहर की दुकानें नौ बजे बंद हो जाती हैं
साढ़े दस के बाद मुहल्ले का उत्सव
पुलिस बंद करा जाती है
मगर फेरीवाले अपना समय
स्वयं तय करते हैं
ऑनलाइन कान्फ़्रेंस फोन पर बात
मुहल्ले वाले नहीं कर सकते?
तो मत करो
आपकी नींद ख़राब होती है तो हो!
गुब्बारे वाला भी
अकड़ के कहता है
भइया हम ग़रीब आदमी हैं
हम कहाँ जाएँ
तुझे परेशानी है तुम पैसे वाले हो
किसी उँची सोसाइटी में चले जाओ
सुना आपने..?
थोड़ी सी अक्कड़ है
पर दोषी गुब्बारे वाला भी नहीं है
वैसे कारण मैं भी नहीं जानता
पर सच्चाई यही है
कारण जो भी हो
लोग सचमुच इतने बेरोज़गार हो गए हैं
पुराने सेक्टर्स फाटक बंद मुहल्ले
अब शांत रिहायशी नहीं रहे
फेरी बाज़ार हो गए हैं
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