प्राकृतिक आपदाएँ
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
प्राकृतिक आपदाएँ
दो तरह से नुक़सान पहुँचाती हैं
सच्चों को गिराती हैं
झूठों को चढाती हैं
मेहनत पर पानी फेरती हैं
उम्मीदों को कुचल देती हैं
भ्रष्टों की मदद करती हैं
बेईमानों को बल देती हैं
अतिवृष्टि और बाढ़
किसानों के फ़सल से पहले
भ्रष्टों के काग़ज़ पर बने महामार्ग
बहा ले जाती हैं
अनावृष्टि और सूखा
किसानों के कंठ से पहले
झूठों की अनुमानित विकास दर
सुखा देता है
आँधी और तुफ़ान
ग़रीबों की झोपड़ी से पहले
बेईमानों के महत्वाकांक्षी सब्ज़बाग़
उजाड़ देता है
बीमारी और महामारी
निर्दोष जनता को मारती है
चतुरों की लहलहाती अर्थव्यवस्था
मुरझा देती है
प्राकृतिक आपदाएँ
देश की कमर तोड़ती हैं
पापियों के तो सारे पाप
मिटा देती हैं
आपदाएँ तो आपदाएँ
दुर्घटनाएँ भी
आरोपियों का साथ देती हैं
शॉर्ट सर्किट की आग
लगती है ठीक वांछित आलमारी के पास
ज़रूरी सबूत की सारी फ़ाइलें
जला देती है
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