नवल वर्ष के आँगन पर
काव्य साहित्य | कविता सुषमा दीक्षित शुक्ला1 Jan 2021
दो हज़ार इक्कीस तुम आओ,
जग में नूतन ख़ुशियाँ लाकर।
परम पिता की सदा दुआ हो,
उनकी सुंदर बगिया पर।
दो ख़ुशियों की शुभ सौग़ातें ,
सुख के सुंदर दीप जलाकर।
दो हज़ार इक्कीस तुम आओ ,
जग में नूतन ख़ुशियाँ लाकर।
खिलते रहें गुलाब सदा ही ,
साँसों की अगणित शाखों पर।
सुंदर अभिलाषाएँ पूरी हों ,
नित नवल वर्ष की राहों पर।
आँधी बनकर ख़ुशबू बिखरे ,
भारत माता के दामन पर।
सपनों की नइया तट पहुँचे ,
नित नवल वर्ष के आँगन पर।
दो हज़ार इक्कीस तुम आओ ,
जग में नूतन ख़ुशियाँ लाकर।
परमपिता की सदा दुआ हो ,
उनकी सुंदर बगिया पर।
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