कपिल कुमार - हाइकु - 006
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु कपिल कुमार15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
1.
तुंग से चले
नदियों की इज़्ज़त
मैदान छलें।
2.
भट्टों ने छीली
खेतों की सारी खाल
फावड़े मार।
3.
भट्टों पे करे
सरकारी दावों को
बच्चे ख़ारिज।
4.
भट्टों ने चाटी
फ़्लैट खेतों में दिखें
घाटी ही घाटी।
5.
गेहूँ ज्यों बढ़े
हवा को चंडी चढ़े
त्यों बाली झड़े।
6.
ज्येष्ठ की धूप
लगे बड़ी-कुरूप
वक़्त का खेल।
7.
बुझा के दीया
अमावस्या की रात
सोया चंद्रमा।
8.
फ़सलें खड़ी
मेघों को देख हाली की
बेचैनी बढ़ी।
9.
पेड़ काट के
ऐसा विकास हुआ
धुँआ-ही-धुँआ।
10.
नदी औ' नारी
लोभियों के हाथों ही
मरी बेचारी।
11.
नदी में मीन
जाल में फँसकर
सामर्थ्य-हीन।
12.
धूप दौड़ती
मेघों के सिर बैठ
दिन में साँझ।
13.
पेड़ों के पत्ते
पतझड़ में खड़े
ज्यों नंगे बच्चे।
14.
रात से लड़े
जुगनुओं के दल
चाव से बड़े।
15.
भोर के गीत
खिड़कियों से झाँकें
किरण बाँचे।
16.
गाँव की फ़िक्र
बजट में भी नहीं
इसका ज़िक्र।
17.
लगा मुँह पे
अलीगढ़ का ताला
सच्चाई मौन।
18.
भींच के दाँत
भू-माफ़िया खोदते
नदी की आंत।
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