अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कपिल कुमार - हाइकु - 006

 

1.
तुंग से चले 
नदियों की इज़्ज़त
मैदान छलें। 
2.
भट्टों ने छीली
खेतों की सारी खाल
फावड़े मार। 
3. 
भट्टों पे करे
सरकारी दावों को
बच्चे ख़ारिज। 
4. 
भट्टों ने चाटी
फ़्लैट खेतों में दिखें
घाटी ही घाटी। 
5. 
गेहूँ ज्यों बढ़े
हवा को चंडी चढ़े
त्यों बाली झड़े। 
6.
ज्येष्ठ की धूप
लगे बड़ी-कुरूप
वक़्त का खेल। 
7.
बुझा के दीया
अमावस्या की रात
सोया चंद्रमा। 
8. 
फ़सलें खड़ी
मेघों को देख हाली की
बेचैनी बढ़ी। 
9. 
पेड़ काट के
ऐसा विकास हुआ
धुँआ-ही-धुँआ। 
10. 
नदी औ' नारी
लोभियों के हाथों ही
मरी बेचारी। 
11. 
नदी में मीन
जाल में फँसकर
सामर्थ्य-हीन। 
12. 
धूप दौड़ती
मेघों के सिर बैठ
दिन में साँझ। 
13. 
पेड़ों के पत्ते
पतझड़ में खड़े
ज्यों नंगे बच्चे। 
14.
रात से लड़े
जुगनुओं के दल
चाव से बड़े। 
15. 
भोर के गीत
खिड़कियों से झाँकें
किरण बाँचे। 
16. 
गाँव की फ़िक्र
बजट में भी नहीं
इसका ज़िक्र। 
17. 
लगा मुँह पे
अलीगढ़ का ताला
सच्चाई मौन। 
18. 
भींच के दाँत
भू-माफ़िया खोदते
नदी की आंत। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

15 अगस्त कुछ हाइकु
|

आओ मनायें सारे मिल के साथ दिन ये शुभ  …

28 नक्षत्रों पर हाइकु
|

01. सूर्य की पत्नी साहस व शौर्य की माता…

अक्स तुम्हारा
|

1. मोर है बोले मेघ के पट जब गगन खोले। …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

कविता - हाइकु

लघुकथा

कविता-ताँका

कविता - क्षणिका

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं