शहर – दो कविताएँ
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
शहर 1
यह शहर
अनंत संभावनाओं से
घिरा हुआ है,
अनंत संभावनाएँ
तलाश करती है
एक ऐसा चेहरा
जो चला सके
सड़क पर चलते हुए
किसी भी पथिक पर चाकू,
यह शहर ढूँढ़ता है
एक ऐसा व्यक्ति
जो खुले में
राहजनी कर सके,
बग़ल से गुज़रने वाले लोग जा रहे हैं
मुँह को नीचे गड़ाए हुए।
शहर 2
कहते है
किसी शहर में
जितनी जल्दी
लोगों के फेफड़े
जवाब दे देते हैं
वह शहर उतना ही
विकसित होता है,
क्योंकि
चिमनियों से
निकलता हुआ धुआँ
मल्टी नेशनल कंपनियों के
ए.सी. से निकलती
क्लोरो-फ़्लोरो-कार्बन
शहर का विकास
तय करते हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंकुर
- अनन्त-प्रेम
- अस्तित्व
- इस दुनिया को इतना छला गया है
- उत्तर-निरुत्तर
- कविता और क्रांति
- क्योंकि, नाम भी डूबता है
- गाँव के पुराने दिन
- गाँव के बाद
- गाँव में एक अलग दुनिया
- चलो चलें उस पार, प्रेयसी
- जंगल
- दक्षिण दिशा से उठे बादल
- देह से लिपटे दुःख
- नदियाँ भी क्रांति करती हैं
- पहले और अब
- प्रतिज्ञा-पत्र की खोज
- प्रेम– कविताएँ: 01-03
- प्रेम– कविताएँ: 04-05
- प्रेम–कविताएँ: 06-07
- प्रेयसी! मेरा हाथ पकड़ो
- फिर मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
- बसंत और तुम
- भट्टों पर
- भूख
- भूखे पेट
- मनुष्य की अर्हता
- मरीना बीच
- मोक्ष और प्रेम
- युद्ध और शान्ति
- रात और मेरा सूनापन
- रातें
- लगातार
- शहर – दो कविताएँ
- शान्ति-प्रस्ताव
- शापित नगर
- शिक्षकों पर लात-घूँसे
- सूनापन
- स्त्रियाँ और मोक्ष
- स्वप्न में रोटी
- हिंडन नदी पार करते हुए
- ज़िन्दगी की खिड़की से
कविता - हाइकु
लघुकथा
कविता-ताँका
कविता - क्षणिका
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं