लाश या कुछ और
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मैंने भीड़़ को हटाते हुए कहा—
“क्या हुआ भाई?
क्यों तुमने इतनी भीड़ लगाई?”
लोगों ने उसको देखा और चिल्लाये—
“लाश, लाश”
मैंने भी देखा
वह एक चालीस वर्ष के आदमी की लाश थी
जो नदी में बहकर आयी थी।
लोकतंत्र का चौथा खंभा लड़खड़ाया
तभी एक संवाददाता वहाँँ आया
जहाँ लोग ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे—
लाश, लाश;
उसने कैमरामैन से कहा—
जल्दी-जल्दी कैमरा तैयार करो
नदी के किनारे पर तैरकर एक ख़बर आयी है।
भला तीसरा खंभा भी कहाँ पीछे रहने वाला था
उसने लाश को देखा
और किसी को फोन मिलाकर कहा—
महोदय!
नदी के किनारे पर एक वोट पड़ी है।
तभी एक बच्चा दौड़ता-दौड़ता वहाँ पहुँचा
और लाश को देखकर रोने लगा—
पिताजी, पिताजी।
वहीं खड़े हुए एक सज्जन ने पूछा—
कैसे डूबे थे ये नदी में?
बच्चे ने उत्तर दिया—
नदी में नहीं क़र्ज़ में डूबे थे।
कई दिनों से परिवार के सभी लोग भूखे थे
किन्तु डूबने से पहले पिताजी बिल्कुल सूखे थे।
अर्थात् नदी में डूबने से देह बढ़ती है
नदी भूख को मिटाती है
बच्चा धीरे-धीरे नदी के पास गया
और उसमें भूख मिटाने के लिए कूद गया।
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