कविता और क्रांति
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
यदि तुम चाहते हो
क्रांति
तो मिट्टी में गाड़ दो
कविताएँ,
सदियों बाद
कोई-सी भी कविता
काम आ सकती है
आनी वाली नस्लों के।
यदि तुम चाहते हो
प्रेम
तो हवा में बिखेर दो
कविताएँ
प्रेमी कवियों द्वारा लिखी हुई
जिन्होंने शराब के नशे में नहीं
नदी के किनारे बैठ कर लिखा गया हो।
यदि तुम चाहते हो
शान्ति
तो शहर के चौराहे पर
या घंटाघर पर
टाँग दो
किसी कवि की कविता
या
किसी शायर की ग़ज़ल
जो उसने लिखी हो
उन बच्चों के लिए
जिनके माँ-बाप मारे गए
युद्धों में।
यदि तुम चाहते हो
दुनिया,
ऐसी दुनिया
जैसी तुम चाहते हो;
सभी बच्चों के हाथों में दे दो
कविताएँ,
जो उनके लिए खोले
उन्नति के द्वार
नभ के भी आर-पार।
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