भट्टों पर
काव्य साहित्य | कविता कपिल कुमार1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
भट्टों पर नहीं पकती ईंटें
भट्टों पर पकती है
एक उम्र
सातवें साल में चल रहे एक बच्चे की
रेहड़ी पर गारा ढोते हुए
अपने से ज़्यादा बोझ उठाये हुए।
भट्टों पर नहीं तपती ईंटें
भट्टों पर तपती है
एक देह
किताबों से दूर एक लड़की की
ज्येष्ठ के महीने में भट्टे की भट्टी के पास से
पकी हुई ईंटें निकालते हुए।
भट्टे झूठा सिद्ध करते है
दिल्ली के दावों को
जो दिल्ली करती है
लाल क़िले से
संसद से।
जब दिल्ली में चलना शुरू होती है
शतरंज की मोहरें
तब वे लौटने लगते है
अपने घरों को
मिट्टी के एक ऊँचे ढेर को पाथ कर।
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